मेरे सबसे प्रिय समकालीन लेखक-कवियों में एक हैं अनीता वर्मा। अनीता जी रांची में रहती हैं। बेहद संवेदनशील और सचेत यह लेखिका मुझे अपनी अथक जिजीविषा से बहुत प्रभावित और आकर्षित करती रही हैं। पिछले कई सालों से दुर्भाग्यवश उनका स्वास्थ्य बहुत ज़्यादा खराब रहा है और पता नहीं कितने आपरेशन उनके हुए हैं। उसके बावजूद समय निकाल कर वे लिखती रहती हैं और चुनिन्दा पत्रिकाओं में उनकी रचनाएं देखने को मिलती रहती हैं।
इस शानदार कवयित्री और उस से भी शानदार व्यक्ति की दो कविताएं पढ़िए:
पुरानी हंसी
मुझे अच्छी लगती है पुरानी कलम
पुरानी कापी पर उल्टी तरफ़ से लिखना
शायद मेरा दिमाग पुराना है या मैं हूं आदिम
मैं खोजती हूं पुरानापन
तुरत आयी एक पुरानी हंसी मुझे हल्का कर देती है
मुझे अच्छे लगते हैं नए बने हुए पुराने संबंध
पुरानी हंसी और दुख और चप्पलों के फ़ीते
नयी परिभाषाओं की भीड़ में
संभाले जाने चाहिए पुराने संबंध
नदी और जंगल के
रेत और आकाश के
प्यार और प्रकाश के।
प्रार्थना
भेद मैं तुम्हारे भीतर जाना चाहती हूं
रहस्य घुंघराले केश हटा कर
मैं तुम्हारा मुंह देखना चाहती हूं
ज्ञान मैं तुमसे दूर जाना चाहती हूं
निर्बोध निस्पंदता तक
अनुभूति मुझे मुक्त करो
आकर्षण मैं तुम्हारा विरोध करती हूं
जीवन मैं तुम्हारे भीतर से चलकर आती हूं।
(दोनों कविताएं राजकमल प्रकाशन से २००३ में छपे अनीता जी के संग्रह 'एक जन्म में सब' से साभार।)
2 comments:
वाकई जीवन के भीतर से चलकर आती हैं ये कवितायें। विषयवस्तु और शिल्प, हर दृष्टि से श्रेष्ठ रचनाएं।
पुरानी हंसी बहुत अच्छी लगी- मनीष
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