Monday, March 3, 2008

बन्देताम परमेश्वरिम भगवतिम बुद्धिप्रदाम शारदाम : एक बार फिर पंडित छन्नूलाल मिश्र; साथ ही एक नए कबाड़ी का स्वागत


मोहल्ले पर आज मैंने पंडित जी की आवाज़ में राग यमन में गाई गंगा-स्तुति पोस्ट की है. उसी सीरीज़ में सुनिये मां भवानी की स्तुति सुनिये इन्हीं महान पंडित छन्नूलाल मिश्र जी से राग भैरवी.


(* इस पोस्ट के साथ कबाड़ख़ाना आज ही जुड़े नए कबाड़ी विनीत उत्पल का स्वागत भी करता है. विनीत उत्पल पेशे से पत्रकार हैं. वे विनीत उत्पल नाम से ही एक ब्लॉग का संचालन करते हैं. अपने बारे में वे अपने ब्लॉग पर लिखते हैं : " पैतृक घर बिहार के मधेपुरा जिले के छोटे से गांव आनंदपुरा में। शुरू से इंटरमीडिएट तक की पढाई मुंगेर के रणगांव और तारापुर में। तिलकामांझी विश्वविद्यालय, भागलपुर से गणित विषय से स्नातक में सम्मान। जामिया मिल्लिया इस्लामिया, नई दिल्ली से जनसंचार एवं रचनात्मक लेखन में स्नातकोत्तर डिप्लोमा। भारतीय विद्या भवन, नई दिल्ली से अंग्रेजी पत्रकारिता में स्नातकोत्तर डिप्लोमा। जामिया मिल्लिया इस्लामिया के नेलसन मंडेला सेंटर फ़ॉर पीस एंड कोन्फ्लिक्ट् रीजोलुशन के पहले बैच में चुनकर डिग्री हासिल की। गुरू जम्भेश्वर विश्वविद्यालय, हिसार से मास्टर इन मास कम्युनिकेशन। भारतीय विद्या भवन, नई दिल्ली से फ्रेंच भाषा के छात्र. नई दिल्ली से प्रकाशित होने वाले अंग्रेजी समाचार पत्रों में छपे ग्रामीण विकास से संबंधित खबरों का विश्लेषण', 'हिंदी के प्रचार-प्रसार में केंद्रीय वित्त मंत्रालय का योगदान' के अलावा 'गुजरात के दंगे के संदभ में मीडिया की भूमिका' पर भारतीय विद्या भवन और जामिया मिल्लिया इस्लामिया, नई दिल्ली में अध्ययन के दौरान शोध। विभिन्न पत्र-पत्रिका में स्वतन्त्र लेखन के बाद दैनिक भास्कर, इन्दौर, रायपुर डेस्क से होते हुवे दिल्ली प्रेस से हिंदुस्तान,नई दिल्ली और फरीदाबाद में. अब हिन्दुस्तान छोड आगरा में न्यूज ऐडिटरी कर देश-दुनिया का जायजा ले रहा हूं." हमें उम्मीद है उनके आने से कबाड़ख़ाना और भी समृद्ध होगा. खुश आमदीद भाई. )

6 comments:

VIMAL VERMA said...

खुश आमदीद...

siddheshwar singh said...

बहुत-बहुत स्वागत है भाई कबाड्डिओं की जमात में

Yunus Khan said...

जय हो जय हो जय हो ।

अजित वडनेरकर said...

सरस्वती स्तुति ने एकदम निर्मल कर दिया। ये चीज़ पंजसराज भी अद्भुत गाते हैं। ढूंढता हूं। हमारे पिताजी ग्वालियर घराने से जुड़े रहे हैं और बचपन से ही भैरवी के नाम पर हमने सबसे पहले यही रचना विद्यादानी दयानी...यही वंदना सुनी।

मुनीश ( munish ) said...

jai ho!

Anita kumar said...

मिश्रा जी का अभिनन्दन, विनित जी का धन्यवाद