एक अस्तित्वहीन हिमालयी अभियान से नोट्स
-विस्वावा शिम्बोर्स्का
तो ये रहा हिमालय.
चन्द्रमा तक दौड़ते पर्वत.
उनके प्रारम्भ के क्षण आकाश के
आश्चर्यजनक उघड़े हुए कैनवस पर दर्ज़.
बादलों के रेगिस्तान में गोदे गए छिद्र.
कहीं भी नहीं घोंपे हुए.
प्रतिध्वनि: एक धवल निःशब्दता.
शान्ति.
येती, यहां हमारे पास हैं बुधवार,
डबलरोटी और वर्णमाला.
दो दूनी दो चार होता है
यहां लाल होते हैं ग़ुलाब
और बनफ़शा नीले.
येती, वहां हम केवल अपराधों पर ही आमादा नहीं हैं.
येती, वहां हर सज़ा का मतलब
मौत नहीं होता.
उम्मीद हमें विरासत में मिली है -
विस्मृति का उपहार.
तुम देख सकते हो हम किस तरह
नया जीवन रचते हैं खण्डहरों के बीच
येती, हमारे पास शेक्सपीयर है
येती, हम पत्ते खेलते हैं
और वॉयलिन बजाते हैं. रात होने पर
हम बत्तियां जलाते हैं, येती!
ऊपर यहां न चन्द्रमा है न धरती
जम जाते हैं आंसू
ओह येती, तुम अर्ध चन्द्रमानव
लौट आओ, ज़रा फिर से सोचो!
हिमस्खलन की चार दीवारों के भीतर से
मैंने यह पुकार कर कहा येती से,
अनन्त बर्फ़ पर
पटकते हुए अपने पैर
गरमाहट के लिए.
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