Saturday, May 10, 2008

मनमोहन

उसकी थकान

यह उस स्त्री की थकान थी
कि वह हंस कर रह जाती थी

जबकि
वे समझते थे
कि अंततः उसने उन्हें
क्षमा कर दिया !

मनमोहन पिछले ४० बरस से कविता लिख रहे हैं और हिन्दी में सडियल रोग की तरह मौजूद उपेक्षा की हिंसक राजनीति के शिकार रहे है। उनकी ये छोटी सी कविता राजकमल से बमुश्किल अस्तित्व में आए उनके एकमात्र संकलन " जिल्लत की रोटी " से साभार !

4 comments:

दीपा पाठक said...

क्या बात है.....

जबकि
वे समझते थे
कि अंततः उसने उन्हें
क्षमा कर दिया,

शानदार।

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

क्या वे इतने मूरख थे?
जो उस हँसी को
क्षमादान समझ बैठे?
कदाचित्
यह उनका निर्लज्ज अभिनय था,
और उसके प्रति
एक और आघात

विजयशंकर चतुर्वेदी said...

चन्द्रकान्त देवताले की भी एक कविता है जिसमें वह कहते हैं कि अपनी सेवा में जुटी स्त्रियाँ देखकर हम समझते हैं कि स्त्रियाँ हमें माफ़ कर देती हैं. वह लाइन पढ़ कर मैं सिहर गया था.

लोकेन्द्र बनकोटी said...

Adbhut!