उसकी थकान
यह उस स्त्री की थकान थी
कि वह हंस कर रह जाती थी
जबकि
वे समझते थे
कि अंततः उसने उन्हें
क्षमा कर दिया !
मनमोहन पिछले ४० बरस से कविता लिख रहे हैं और हिन्दी में सडियल रोग की तरह मौजूद उपेक्षा की हिंसक राजनीति के शिकार रहे है। उनकी ये छोटी सी कविता राजकमल से बमुश्किल अस्तित्व में आए उनके एकमात्र संकलन " जिल्लत की रोटी " से साभार !
4 comments:
क्या बात है.....
जबकि
वे समझते थे
कि अंततः उसने उन्हें
क्षमा कर दिया,
शानदार।
क्या वे इतने मूरख थे?
जो उस हँसी को
क्षमादान समझ बैठे?
कदाचित्
यह उनका निर्लज्ज अभिनय था,
और उसके प्रति
एक और आघात
चन्द्रकान्त देवताले की भी एक कविता है जिसमें वह कहते हैं कि अपनी सेवा में जुटी स्त्रियाँ देखकर हम समझते हैं कि स्त्रियाँ हमें माफ़ कर देती हैं. वह लाइन पढ़ कर मैं सिहर गया था.
Adbhut!
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