Tuesday, July 1, 2008

बुलट गई उलट ... राजदूत की टंकी में भूत उर्फ़ हारमोनियम की लीलामी

बुलट गई उलट जावा कभी न पावा
विक्की खाती चिक्की
राजदूत की टंकी में भूत

...मुझे यक़ीन है आप की समझ में बहुत ज़्यादा नहीं आई होंगी ये शब्दमाला. बहरहाल यह एक विज्ञापन है. कबाड़ी की सलाह मानिये और इस सुन्दर, सस्ते और टिकाऊ ब्लॉग पर एक बार ज़रूर जाइए.

एक बानगी देखिये:


अयं कः?

अयं ब्लागरः

ब्लागरं किं करोति

कटपट-पश्यति-खटपट- पश्यति, क्लिकति पुनपुनः मूषकम्।ब्लागर कौन होता है? जिसके पास कम्प्यूटर होता है। कंपूटर किसके पास होता है? जो साक्षर होता है। क्या कंपूटर होने से कोई प्राणी ब्लागर होता है? नहीं सिर्फ मनुष्य अब तक ब्लागर होता पाया गया है और इंटरनेट कनेख्शन भी अपरिहार्य है। इंटरनेट किसके पास होता है? जो शुल्क देता है। यह शुल्क लेता कौन है क्या वणिक? चुप वे देवता हैं जो ज्ञान, सूचना और अभिव्यक्ति और मनोरंजन के समुद्र में तैरने के लिए कास्ट्यूम और उसके खारे जल की हानियों से जिज्ञासुओं की त्वचा को बचाने के लिए आसुत जल और तदुपरांत लोशन देते हैं। साधु, साधु।

किंतु कंपूटर किसके पास होता है? जिसके पास उसे रखने के लिए एक मेज हो। मेज किसके पास होती है? जिसके पास उसके समक्ष रखने के लिए एक कुर्सी हो। कुर्सी किसके पास होती है? हां यह भी एक तरह की खामोश, अनुल्लेखनीय सत्ता है, अधिक काल तक उस पर वही बैठ पाता है जो नितंब-दाह से बचने के लिए उस पर कुशन रखता है। कुशन किसके पास होते हैं? जिसके पास अन्य कुशन होते हैं अर्थात वे समूह में रहते हैं। अन्य उपादान? नेत्र हानि से बचने के लिए चश्मा, पानी के लिए जलछुक्कक, काफी का मग जिसमें काफी, चाय या बियरादि वैकल्पिक द्रव हों. ये सब क्या अंतरिक्ष में अवस्थित होते हैं। मनुष्य जिस गुरूत्वाकर्षण का दास है उसी से आबद्ध होने के कारण कदापि नहीं, ये किसी नगर या उपनगर के किसी पुर के भवन में या भवन के एक कमरे में स्थित होते हैं. ...

11 comments:

अजित वडनेरकर said...

एक पूर्व संपादक किसी खास वजह से कुशन से आराम नहीं पा सके । उनके पुत्र ने वेस्पा स्कूटर की स्टेपनी से खाली ट्यूब निकलवाई , उसे कुर्सी पर बिछाया और फिर महोदय जी को उस पर आसीन कराया। फिर हवा भरने का क्रम शुरू हुआ । आरामदेह स्थिति में आने तक हवा भरी जाती रही और फिर स्थाई तौर पर कुशन की जगह वेस्पा के ट्यूब ने ले ली :)

Udan Tashtari said...

वहीं जाते हैं जनाब..काहे कि विज्ञापन पसंद आया. :)

siddheshwar singh said...

बहुत खूब!!
लेकिन माल आधा-सा ही डिस्प्ले किया .उसी दुकान पर गए और मौजा ही मौजा!!!!!!!!

इरफ़ान said...

भई आप भी खोजी व्यक्ति हैं. यहाँ तो ख़ज़ाना है.

Ashok Pande said...

इरफ़ान दद्दू, ये अपने प्यारे भाई दिलीप मंडल थे जिन्होंने इस बढ़िया और विचारवान ब्लॉग के बारे में बताया. और अपन तो हमेसा ऐसे ही उत्तम कबाड़ को तलाशा करा करे हैं अल्ला मियां के फजलू से. जय बोर्ची बाबा की.

विजयशंकर चतुर्वेदी said...

अब संस्कृत में आपकी पोस्ट का इंतज़ार है. हा हा हा!

विजयशंकर चतुर्वेदी said...

...लेकिन शो रूम में जाकर देखा तो जाहिर हुआ कि यह तो अनिल भाई का चमत्कार है!

Unknown said...

भात से कांप चिपकायी पतंग को इत्ती जोर की छुड़इया देने के थैंक्यू सर जी। सच्ची।

मुनीश ( munish ) said...

mahol bana diya ji !

मैथिली गुप्त said...

वाह अनिल साहब, मजा आगया.
पिछले सप्ताह पढ़ न सका. आज आर्ट आफ रीडिंग पर सुना तो बहुत बहुत आनन्द आया.

मुनीश ( munish ) said...

Talent speaks ! kya baat hai !