Tuesday, July 29, 2008

सुन चरखे दी मिट्ठी मिट्ठी कूक: नुसरत की आवाज़ में पंजाबी लोकगीत

अपनी नातों और सूफ़ियाना क़व्वालियाओं के लिए जगतविख्यात नुसरत फ़तेह अली ख़ान अपने जीवनकाल में ही एक किंवदन्ती बन गए थे. आवाज़ के साथ उनकी जादूगरी के साथ मैं पता नहीं कितनी कितनी बार बहा हूं, रोया हूं और नितान्त अकेलेपन में भी अलौकिक साथियों से घिरा हूं. नुसरत साहब की दिव्य आवाज़ में बेहद सादगी से गाया गया पंजाब का एक प्रसिद्ध लोकगीत सुनिये:



(इस प्लेयर से परिचय माननीय श्री अफ़लातून जी के ब्लॉग पर लगी इस संग्रहणीय पोस्ट से हुआ. उनका धन्यवाद.)

6 comments:

ALOK PURANIK said...

भई वाह वाह है जी।
इस सादगी पे कौन ना मर जाये ए खुदा
राष्ट्रीय संग्रहालय को वो कबाड़खाना कहते हैं

सरजी
मैंने तो कबाड़खाने को राष्ट्रीय संग्रहालय घोषित कर दिया है।

पारुल "पुखराज" said...

gazab post..aabhaar

Udan Tashtari said...

शुक्रिया इसको सुनवाने का.

नीरज गोस्वामी said...

कबाड़खाने में पड़े हीरे जैसी पोस्ट.....वाह....
नीरज

कंचन सिंह चौहान said...

Ashok Ji iska mp3 version kaise milega....? ummeed hai ki kuchh nahi ho sakega to aap mujhe mail to kar hi de.nge.... office me thik se sun nahi paa rahi hu.n aur sunne ki tamanna bahut din se hai
sabhar

Ashok Pande said...

कंचन जी

आप मुझे इस बाबत मेल करें. आपका ईमेल आईडी आपकी प्रोफ़ाइल में नहीं है. आपको एम पी ३ भेज दूंगा.