जहां थोड़ा-सा सूर्योदय होगापानी के पेड़ पर जब
बसेरा करेंगे आग के परिंदे
उनकी चहचहाहट के अनंत में
थोड़ी-सी जगह होगी जहां मैं मरूंगा
मैं मरूंगा जहां वहां उगेगा पेड़ आग का
उस पर बसेरा करेंगे पानी के परिंदे
परिंदों की प्यास के आसमान में
जहां थोड़ा-सा सूर्योदय होगा
वहां छायाविहीन एक सफेद काया
मेरा पता पूछते मिलेगी
(*पेन्टिंग को बड़ा देखने के लिए इमेज पर क्लिक करें)
18 comments:
कविता और उस पर पेंटिंग बहुत सुंदर अदभुत हैं दोनों ..
पानी के परिंदे, काया की सफ़ेदी.
आग के रंग को मद्धम रहने दिया.
एक और अच्छी पेंटिंग.
देवताले जी हमारे समय के सबसे महत्वपूर्ण कवियों में हैं। इनकी कविताओं का आस्वाद जीवन का खरा आस्वाद है। उपर से रविन्द्र की पेंटिंग मजा आ गया। आभारी इस प्रस्तुति के लिए।
परिंदों की प्यास का आसमान औ इतनी गाढ़ी हरियाली...बहुत कुछ कहा इन्होंने।
ये कविता जीवन और मृत्यु के अन्त और अनन्त से बखूबी जूझती है। पेंटिंग भी बहुत अच्छी। आपको बधाई !
पेंटिग के हरियालेपन को समृध्द करती पूज्य देवताले जी कविता...वाह! क्या बात है. काश ...हमारी कलाओं का भावुक अंर्तसंबध मनुष्य में मुखरित होने लगे ?
आभार इस प्रस्तुति के लिए.
सशक्त कविता और उस पर सुंदर चित्र।
kavita baar baar padhi...chitr me hirno ke honey sa aabhaas...sundar dono
ग़ज़ब की पेन्टिंग और देवताले जी की क्या शानदार कविता. धन्यवाद.
रचना एवं पेंटिग दोनों में तारतम्य प्रदर्शित हो रहा है।
गजब की पेंटिग। सजीव एवं चित्ताकर्षक। बधाई।
सोने में सोहागा है यह प्रस्तुति.
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आभार
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
दंवतालेजी मेरे परमादरणीय हैं लेकिन मुझे तो कविता के मुकाबले पेण्टिंग ज्यादा प्रभावी और मन की आग को ठण्डा करने वाली लगी ।
बहुत ही सुंदर!
आप सबका प्यार और स्नेह पाकर और हरा-भरा हो गया हूं। सचमुच, सबके प्रति गहरा आभार।
बहुत सुंदर
आपकी ये पेंटिंग
एकदम से तो ध्यान खींचती है लेकिन...
मुझे लगता है इस श्रृंख्ला की आपकी दूसरी पेंटिंग अधिक प्रभावी हैं...
हो सकता है कंप्यूटर स्क्रीन पर देखने से मुझे ऐसा लग रहा हो...
खैर प्रयोग सुंदर है रविन्द्र भाई,
बधाई बधाई!!
बीच में एक सप्ताह शहर से बाहर रहा आज ही लौटा हूँ!
मित्रवत आपका
अवधेश प्रताप सिंह
इंदौर ९८२७४ ३३५७५
कुश के प्रति भी आभार। अवधेश भाई, शुक्रिया। नई सिरीज पर काम शुरू कर चुका हूं।
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