Thursday, August 21, 2008

चन्द्रकान्त देवताले की कविता पर रवीन्द्र व्यास की पेन्टिंग



जहां थोड़ा-सा सूर्योदय होगा

पानी के पेड़ पर जब
बसेरा करेंगे आग के परिंदे
उनकी चहचहाहट के अनंत में
थोड़ी-सी जगह होगी जहां मैं मरूंगा

मैं मरूंगा जहां वहां उगेगा पेड़ आग का
उस पर बसेरा करेंगे पानी के परिंदे
परिंदों की प्यास के आसमान में
जहां थोड़ा-सा सूर्योदय होगा
वहां छायाविहीन एक सफेद काया
मेरा पता पूछते मिलेगी

(*पेन्टिंग को बड़ा देखने के लिए इमेज पर क्लिक करें)

18 comments:

रंजू भाटिया said...

कविता और उस पर पेंटिंग बहुत सुंदर अदभुत हैं दोनों ..

Geet Chaturvedi said...

पानी के परिंदे, काया की सफ़ेदी.
आग के रंग को मद्धम रहने दिया.
एक और अच्‍छी पेंटिंग.

प्रदीप मिश्र said...

देवताले जी हमारे समय के सबसे महत्वपूर्ण कवियों में हैं। इनकी कविताओं का आस्वाद जीवन का खरा आस्वाद है। उपर से रविन्द्र की पेंटिंग मजा आ गया। आभारी इस प्रस्तुति के लिए।

शायदा said...

परिंदों की प्‍यास का आसमान औ इतनी गाढ़ी हरियाली...बहुत कुछ कहा इन्‍होंने।

किरीट मन्दरियाल said...

ये कविता जीवन और मृत्यु के अन्त और अनन्त से बखूबी जूझती है। पेंटिंग भी बहुत अच्छी। आपको बधाई !

संजय पटेल said...

पेंटिग के हरियालेपन को समृध्द करती पूज्य देवताले जी कविता...वाह! क्या बात है. काश ...हमारी कलाओं का भावुक अंर्तसंबध मनुष्य में मुखरित होने लगे ?

Udan Tashtari said...

आभार इस प्रस्तुति के लिए.

दिनेशराय द्विवेदी said...

सशक्त कविता और उस पर सुंदर चित्र।

पारुल "पुखराज" said...

kavita baar baar padhi...chitr me hirno ke honey sa aabhaas...sundar dono

Vineeta Yashsavi said...

ग़ज़ब की पेन्टिंग और देवताले जी की क्या शानदार कविता. धन्यवाद.

Prabhakar Pandey said...

रचना एवं पेंटिग दोनों में तारतम्य प्रदर्शित हो रहा है।
गजब की पेंटिग। सजीव एवं चित्ताकर्षक। बधाई।

Dr. Chandra Kumar Jain said...

सोने में सोहागा है यह प्रस्तुति.
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आभार
डॉ.चन्द्रकुमार जैन

विष्णु बैरागी said...

दंवतालेजी मेरे परमादरणीय हैं लेकिन मुझे तो कविता के मुकाबले पेण्टिंग ज्‍यादा प्रभावी और मन की आग को ठण्‍डा करने वाली लगी ।

वर्षा said...

बहुत ही सुंदर!

ravindra vyas said...

आप सबका प्यार और स्नेह पाकर और हरा-भरा हो गया हूं। सचमुच, सबके प्रति गहरा आभार।

कुश said...

बहुत सुंदर

यारा said...

आपकी ये पेंटिंग
एकदम से तो ध्यान खींचती है लेकिन...


मुझे लगता है इस श्रृंख्ला की आपकी दूसरी पेंटिंग अधिक प्रभावी हैं...
हो सकता है कंप्यूटर स्क्रीन पर देखने से मुझे ऐसा लग रहा हो...




खैर प्रयोग सुंदर है रविन्द्र भाई,
बधाई बधाई!!

बीच में एक सप्ताह शहर से बाहर रहा आज ही लौटा हूँ!


मित्रवत आपका
अवधेश प्रताप सिंह
इंदौर ९८२७४ ३३५७५

ravindra vyas said...

कुश के प्रति भी आभार। अवधेश भाई, शुक्रिया। नई सिरीज पर काम शुरू कर चुका हूं।