Wednesday, September 10, 2008

दर-ओ-दीवार से भी रश्क मुझे आता है, गौर से जब किसी जानिब वो नज़र करते हैं

डॉक्टर रोशन भारती की पहचान बताने को मुझ से कोई पूछे तो मैं कहूंगा: "बेहद सुरीला शख़्स!" यह इत्तेफ़ाक़ था कि दिल्ली में रहने वाला, संगीत-कला के मामले में निहायत ठस्स एक दोस्त मेरे लिए भारती साहब का अल्बम 'दाग़' लाकर छोड़ गया. उसे किसी ने बतौर उपहार दिया था पर वह संगीत सुनता ही नहीं, सो उसकी खर-मित्र बुद्धि ने मुझे ही उक्त गिफ़्ट का सही इस्तेमाल करने लायक समझा.

टाइम्स म्यूज़िक द्वारा जारी किया गया यह संग्रह अपने रैपर से बाहर आने के बाद से ही मेरे सर्वप्रिय अलबमों में जगह बनाने में कामयाब हो गया. फिर मैंने कभी सुख़नसाज़ शुरू किया. जाहिर है मैंने डॉक्टर रोशन भारती की आवाज़ में वहां दाग़ देहलवी की एक ग़ज़ल लगाई. उस पर भाई संजय पटेल की टिप्पणी आई. उन्होंने यह भी बताया कि मुझे जल्द ही डॉक्टर रोशन भारती का फ़ोन नम्बर देंगे. दो दिन बाद मैं किसी दोस्त के घर था जब फ़ोन बजा और उस तरफ़ से भारती साहब विनम्रतापूर्वक अपना परिचय दे रहे थे. ऐसे मौके कम आते हैं जब आप एक अबूझ ख़ुशी से सन्न रह जाते हैं - वह भी ऐसा ही क्षण था. ऊपर से उन्होंने मुझे ज़रूरत से ज़्यादा मान देते हुए एक शेर भी गा के सुना दिया.

अलबम के नाम से जाहिर है, इस में सारी ग़ज़लें दाग़ की हैं. रोशन भारती की आवाज़ में नए ज़माने के गायकों के पैंतरे नहीं, अलफ़ाज़ को मोहब्बत करने की तमीज़ है. कहीं-कहीं वे आपको इशारे-इशारे में अपनी रेन्ज भी दिखाते चलते हैं. पर सबसे बड़ी बात तो ये है कि उन्हें सुनना बहुत-बहुत सुकूनभरा होता है. कल रात भर उस अलबम को सुनता रहा तो सोचा क्यों न आप सब को डाक्साब से मिलाऊं.

प्रस्तुत हैं उनकी गाई दो ग़ज़लें:




दिल गया, तुमने लिया हम क्या करें
जाने वाली चीज़ का ग़म क्या करें

एक साग़र पर है अपनी ज़िन्दगी
रफ़्ता-रफ़्ता इसे भी कम क्या करें

मामला है आज हुस्न-ओ-इश्क़ में
देखिये वो क्या करें, हम क्या करें

आईना है और वो हैं देखिये
फ़ैसला दोनों ये बाहम क्या करें



आप जिन जिन को हदफ़ तीर-ए-नज़र करते हैं
रात दिन हाय जिगर हाय जिगर करते हैं

गै़र के सामने यूं होते हैं शिकवे मुझसे
देखते हैं वो उधर बात इधर करते हैं

दर-ओ-दीवार से भी रश्क मुझे आता है
गौर से जब किसी जानिब वो नज़र करते हैं

एक तो नश्शा-ए-मय उस पे नशीली आंखें
होश उड़ते हैं जिधर को वो नज़र करते हैं
ooo
*अगर आपको लगा हो कि डाक्साब गले में आला लगाए तानपूरे पर जमे बैठे होंगे तो निराशा हाथ लगेगी. ये वो वाले नहीं दूसरे वाले डॉक्टर हैं और बेग़म अख़्तर पर महत्वपूर्ण शोधकार्य कर चुके हैं जिसे किताब की सूरत में आने की राह में ख़ुद इन्हीं साहब का आलस आड़े रहा है. स्मार्ट नौजवान हैं :



कोटा, राजस्थान में रहने वाले रोशन भारती से उनके मोबाइल पर 09829036828 पर बात की जा सकती है.

10 comments:

शिरीष कुमार मौर्य said...

ऐसी प्यारी आवाज़ वाले डाक्साब को मेरा सलाम! ये मुलाक़ात अब चलती रहेगी!

शिरीष कुमार मौर्य said...
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Yunus Khan said...

रोशन भारती हमारे दोस्‍त हैं । विविध भारती पर हमने उनका इंटरव्‍यू किया है ।
साथ में स्‍टेज प्रोग्राम भी ।
मुझे उनका सान्निध्‍य मिला है ।
बढिया कलाकार बढिया शखस ।

बेहतरीन प्रस्‍तुति
यूनुस

फ़िरदौस ख़ान said...

शानदार पेशकश है...

शोभा said...

बहुत खूब! मधुर संगीत है. आभार

संजय पटेल said...

रोशन भाई में एक ग़ज़ल गायक के सारे हुनर हैं.सबसे बेहतरीन बात यह है कि हर वक़्त उनमें एक सादा कलाकार जीवंत रहता है. कविता और शायरी की बेजोड़ समझ और बिना किसी मंचीय गिमिक के अपनी बात को वज़नदार तरीक़े से कहने का शरूर. रोशन भाई के दादा हुज़ूर से ही तो सीखा है जगजीतसिंह जी ने शास्त्रीय संगीत.

पहले भी कह चुका हूँ , फ़िर दोहराता हूँ,समय ने साथ दिया तो दुनिया रोशन भाई को बहुत ऊँची जगह पर देखेगी.इंशाअल्ला !.

Udan Tashtari said...

आभार इस प्रस्तुति के लिए.बेहतरीन.

Manish Kumar said...

achcha laga bharti sahab ko sunna. dossri ghazal ka har sher qamaal hai.

Vineeta Yashsavi said...

क्या बात है!!!

Pratibha said...

शानदार प्रस्तुति। आभार।