Thursday, September 11, 2008

एक फच्चा कबाड़ी की कविता

अरिंदम बारह साल के हैं। आज अचानक उन्हें यह अहसास हुआ कि वे तो आशुकवि हैं! फिर क्या था, धड़ाधड़ कविताएँ रचने लगे। बाहर बारिश की झड़ी थी (दिल्ली की बात है ये) और उनकी कॉपी में कविताओं की। फिर कविता मॉनसून पर भी लिखी गई जो कि अब आपकी नज़र है। दाद जी खोल कर दीजिएगा, (अरिंदम की) उम्र का तकाज़ा है।

जब धरती नहा रही थी

आसमां रो रहा था
बादल गुर्रा रहे थे
धरती नहा रही थी
यह था मॉनसून

बच्चे भीग रहे थे
फसलें उग रही थीं
चादर आसमां को ढक रही थी
यह था मॉनसून

10 comments:

Ashok Pande said...

अरिन्दम भाई को दस जीबी सलाम. सुन्दर कविता है हमारे पक्के दोस्त की!

Ashok Pande said...

हां दिलीप भाई, अरिन्दम सर की एक फ़ोटू लगा देते तो अच्छा लगता.

विजयशंकर चतुर्वेदी said...

अरिंदम को ढेर सारा प्यार. उसके मम्मी-पापाजी को चाहिए कि पहले वे उसे ख़ूब पढ़ने दें, जो भी वह पढ़ना चाहे. वैसे पूत के पाँव पालने में दिखने लगे हैं. अरिंदम बेटा के लिए एक लोकोक्ति और- 'होनहार बिरवान के होत चीकने पात.'

siddheshwar singh said...

फ़च्चा कबाड़ी को चच्चा की ओर से बधाई, प्यार और पुच्च!और लिखो बेते!! बोफ़्फ़ाईन!!!

शिरीष कुमार मौर्य said...

बच्चा नहीं, बडा है यह तो ! बहुत ही अच्छा !

संगीता पुरी said...

बहुत अच्छा लिख लेते हैं ,अरिंदम बेटे। ऐसी ही कोशिश करते रहें।

Dr. Amar Jyoti said...

शायद अरिंदम जैसे ही किसी बच्चे को देख कर ही कहा था वर्डसवर्थ ने-'Child is the father of man.'

Arun Aditya said...

अरिंदम की कविता में दम है... बधाई ।

Unknown said...

बहुत खूब राजू। बादल और आसमां की फाइट पढ़ कर मजा आ गया।

pankaj srivastava said...

बहुत अच्छे,,,बादल का गुर्राना तो गजब ढा गया...डटे रहो..एक दिन बादलों के जबड़े में हाथ डालकर इंद्रधनुष खींच लाने के लिए...बधाई