Tuesday, September 30, 2008

डा शिवमंगल सिंह सुमन की कविता: आभार

कबाड़खाने के एक साल पूरा होने के उपलक्ष्य में डा शिवमंगल सिंह सुमन (जीवनकालः १९१५-२००२) की लिखी कविता आभार स्वरूप पेश है। शिवमंगल सिंह सुमन को सन् १९७४ में साहित्य अकादमी पुरस्कार और सन् १९९९ में पद्म भूषण से नवाजा गया है।

आभार

जिस-जिस से पथ पर स्नेह मिला, उस-उस राही को धन्यवाद।
जीवन अस्थिर अनजाने ही, हो जाता पथ पर मेल कहीं,
सीमित पग डग, लम्बी मंज़िल, तय कर लेना कुछ खेल नहीं।
दाएँ-बाएँ सुख-दुख चलते, सम्मुख चलता पथ का प्रमाद
जिस-जिस से पथ पर स्नेह मिला, उस-उस राही को धन्यवाद।

साँसों पर अवलम्बित काया, जब चलते-चलते चूर हुई,
दो स्नेह-शब्द मिल गये, मिली नव स्फूर्ति, थकावट दूर हुई।
पथ के पहचाने छूट गये, पर साथ-साथ चल रही याद
जिस-जिस से पथ पर स्नेह मिला, उस-उस राही को धन्यवाद।

जो साथ न मेरा दे पाये, उनसे कब सूनी हुई डगर
मैं भी न चलूँ यदि तो क्या, राही मर लेकिन राह अमर।
इस पथ पर वे ही चलते हैं, जो चलने का पा गये स्वाद
जिस-जिस से पथ पर स्नेह मिला, उस-उस राही को धन्यवाद।

कैसे चल पाता यदि न मिला होता मुझको आकुल अंतर
कैसे चल पाता यदि मिलते, चिर-तृप्ति अमरता-पूर्ण प्रहर
आभारी हूँ मैं उन सबका, दे गये व्यथा का जो प्रसाद
जिस-जिस से पथ पर स्नेह मिला, उस-उस राही को धन्यवाद।

8 comments:

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

साँसों पर अवलम्बित काया, जब चलते-चलते चूर हुई,
दो स्नेह-शब्द मिल गये, मिली नव स्फूर्ति, थकावट दूर हुई।
कृतज्ञता ज्ञापन भी मन को छू गया।

सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्रयम्बके गौरि नारायणी नमोस्तुते॥


शारदीय नवरात्रारम्भ पर हार्दिक शुभकामनाएं!
(सत्यार्थमित्र)

हिन्दुस्तानी एकेडेमी said...

आप हिन्दी की सेवा कर रहे हैं, इसके लिए साधुवाद। हिन्दुस्तानी एकेडेमी से जुड़कर हिन्दी के उन्नयन में अपना सक्रिय सहयोग करें।

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सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्रयम्बके गौरि नारायणी नमोस्तुते॥


शारदीय नवरात्रारम्भ पर हार्दिक शुभकामनाएं!
(हिन्दुस्तानी एकेडेमी)
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शिरीष कुमार मौर्य said...

मित्र तरुण !
अन्यथा मत लेना भाई, पर शिवमंगल सिंह सुमन कबाड़खाने के स्तर के कवि नहीं हैं!
उनकी दुनियावी सफलताओं और महानता में कोई शक नहीं, पर साहित्य में वे नहीं हैं !

Tarun said...

shirish ji,
istar banana hi hai to woh rachna ke base per ho to sahi hai, jaroori nahi har kisi naami aur should I say kabadkhane ke istar ke rachnakar ki har rachna unche istar ki hi ho. Harivansh ray se agar Madhushala alag kar do to unka istar bhi bahut hi kamtar ho jaayega. Saath hi saath koi bhi post kis paripekshya me post ki gayi hai woh bhi dekhni chahiye. Har aadmi ke vichar alag hote hain, unki soch alag aur usi ke uppar hum ek istar ki line kheench dete hai.

Aur Aisa nahi hai ki ab tak kabadkhane me jo kuch parosa gaya, sab kuch ek saman istar ka hi tha, kuch kamtar thai to kuch uchhtar thai. Agar ye galat hai to mujhe swechha se swikarne me koi gurej nahi ki hum kabadkhane ke istar ke kabadi nahi.

Udan Tashtari said...

आभार इस प्रस्तुति के लिए.

ईद मुबारक!!
नवरात्रि की हार्दिक मंगलकामनाऐं.

शिरीष कुमार मौर्य said...

तरुण जी आपकी बात पर मैंने विचार किया, कुछ बातें समझ में भी आयीं, सिवा उलाहने भरी उस आखिरी पंक्ति के ! पर्सनल क्यों हो गए यार ! बात तो सुमन जी की चल रही थी ! फिर भी कुछ ग़लत हुआ हो तो मुझे खेद है !

Tarun said...

Shirish ji, mene ise personal nahi liya, mera maanna hai ki group blogging me saman vicharon ka milna jaroori hai agar kisi ke nahi milte to us group ki safalta ke liye uska hatna jaroori ho jata hai.

TOM said...

Can anyone give the summary of the poem"Abhaaar"by poet

shiv man gal