Tuesday, September 2, 2008

वेणुगोपाल की कविता एक्टिव कविता थी

यह एक कवि की आवाज थी जिसमें सुबह-सुबह अवसाद तैर रहा था।
आज सुबह करीब पौने आठ बजे चंद्रकांत देवतालेजी का फोन आया कि वेणु गोपाल नहीं रहे। फिर थोड़ी देर चुप्पी रही। उस चुप्पी में बहुत कुछ ऐसा था जिसे सुना-महसूस किया जा सकता था।
एक कवि के लिए एक कवि का जाना क्या मायने रखता है? इस सवाल का जवाब शायद खबर देने का बाद फैल गई चुप्पी में कहीं था। यह खबर देवतालेजी को विष्णु नागर के एसएमएस के जरिये मिली थी।
देवतालेजी ने कहा-यह बहुत दुःखद है। वे मुझसे छह-सात साल छोटे थे। उन्होंने एक लंबी बीमारी की यातना झेली-सही। बीमारी में किसी कवि का इस तरह छोड़कर चले जाना मेरे लिए निजी तौर पर बहुत कष्टप्रद है। अभी डेढ़ माह पहले मेरी उनसे फोन पर बात हुई थी। वेणुगोपाल कह रहे थे-चंद्रकांतभाई (वे मुझे इसी तरह संबोधित करते थे) मैं आपसे वादा करता हूं, चंगा होकर आऊंगा। वह वादा अब कभी पूरा नहीं होगा।
एक समय था जब हिंदी कविता में आलोकधन्वा और वेणुगोपाल की खूब चर्चा होती थी। वे नक्सली आंदोलन से आए कवि थे। उनकी कविताअों में नक्सली आंदोलन का तेवर था, टेम्परामेंट था। उनकी एक खास आवाज थी। उनकी कविता एक्टिव कविता थी।
वेणुगोपाल ने कभी पूछा था जो कवि जिंदगी के सवाल भूलकर कविता के सवाल बूझने लगे तो वह कैसी जिंदगी काटेगा?
देवतालेजी बताते हैं उनकी कविता नैतिकता, मानवीय गरिमा और वंचितों की पक्षधर कविता थी। ये सब चीजें उनकी कविता में सज-धजकर अभिव्यक्त नहीं होती थीं बल्कि वह उनकी भीतर मथती-मथाती कविता में सहज रूप से अभिव्यक्त होती थीं। उनके गहरे सरोकार उनके भीतर से निकलकर कविता में प्रकट होते थे। कविता उनके लिए माध्यम ही नहीं थी। उनके जीवन और कविता में फांक नहीं देखी जा सकती।
देवतालेजी की आवाज में अब भर्राहट है। वे कहते हैं वह दोस्त था, दूर था लेकिन कविता के कारण बहुत पास था। हम सब एक ही दरख्त के कवि-परिंदे थे जो हर तरफ से आकर बैठते थे।
यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है कि हिंदी में कवियों की लिस्ट जारी करने की आदत रही है। इसमें वेणुगोपाल और कई महत्वपूर्ण कवि अक्सर छूटते रहे हैं। बरसों तक उन्हें जारी लिस्ट में छोड़ते आए हैं जबकि वे अपनी कविता में हमेशा महत्वपूर्ण बने रहे।
अब हिंदी पट्टी में कोई बड़ा जनआंदोलन नहीं है। मानवीय गरिमा और वंचितों के लिए अब कोई उठ खड़ा नहीं होता। हिंदी पट्टी में अब कोई जनआंदोलन नहीं है और न कवि का समाज और जीवन में बड़ा कद और दूर तक सुनाई देने वाली आवाज।

9 comments:

anurag vats said...

abhi akhbaar ke liye khabar bna kar utha hun...venuji ke liye unki peedhi ke na jane kitne kavi-lekhak dukhi hain...

PREETI BARTHWAL said...

बहुत दुःख की बात है।

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

मेरी ओर से वेणुगोपाल जी को श्रद्धांजलि...।

शिरीष कुमार मौर्य said...

वेणुगोपाल को दिली याद.

Kavita Vachaknavee said...

Aap ke shreshth kabadi vale kisi bhi link ko click karne par yah sandesh aata hai ---



You are about to log in to the site "gmail.com" with the username "ramrotiaaloo", but the website does not require authentication. This may be an attempt to trick you.

Is "gmail.com" the site you want to visit?


aur iske saath YES and NO ke 2 opt. aate hain.

Yani jisne bhi Yes click kiya hai, use apna kootshabda badal lena chahiye !!

विजयशंकर चतुर्वेदी said...

दारुण दुःख की बात है.

Ashok Pande said...

हिन्दी कविता का दुर्भाग्य रहा कि आलोचकों ने उसे लिस्ट इत्यादि की सड़ियल सीमाओं में बांधकर उसकी ऐसीतैसी करने का सारा जतन किया.

क्या हम सारे अब आलोक धन्वा के मरने का इन्तज़ार करें?

मुझे दुःख भी है क्षोभ भी.

बहरहाल, कविता वाचक्नवी जी! भूल सुधार ली गई है. याद दिलाने का धन्यवाद.

Ek ziddi dhun said...

aalochak bhi aur safal rachnakaar bhi, ek hi jagah hain.

ravindra vyas said...

साहित्यिक लिस्ट का तो ऐसा मामला है कि त्रिलोचन भी एक समय जारी की गई लिस्ट में छोड़ दिए गए थे। व्यंग्य और गहरी पीड़ा के साथ बाबा ने लिखा था जिसका भाव यह था कि सुना है प्रगतिशीलों की लिस्ट निकली है जिसमें त्रिलोचन का नाम नहीं है। तो इस लिस्ट ने कइयों का कबाड़ा किया है। और लिस्ट हर कहीं जारी होती देखी जा सकती है। कई बार लगता है कि जो छूट गए हैं वे ही महत्वपूर्ण हैं।