हिन्दी भाषा और साहित्य के इतिहास में रहीम मुख्यत: अपने नीतिपरक दोहों के लिए जाने जाते हैं लेकिन कलम और तलवार का धनी इस महान कवि को मात्र इतने में ही सीमित कर देना उसके बहुविध कला कौशल और वैविध्य से भरे विपुल रचना संसार को नेपथ्य में रखने जैसा है. आज प्रस्तुत है रहीम के बहुभाषा काव्य के दो नायाब मोती -
१-
दृष्टा तत्र विचित्रता तरुलता , मैं गया था बाग में.
काचित्तत्र कुरंगशावनयना , गुल तोड़ती थी खड़ी..
उन्मद्भ्रूधनुषा कटाक्षविशि: घायल किया था मुझे.
तत्सीदामि सदैव मोहजलधौ , हे दिल गुजारो शुकर..
( विचित्रतओं से भर लता - युग्म और वॄक्षों की पंक्तियों को देखने के लिए मैं तो बाग में गया था. वहाँ क्या देखता हूँ कि हिरण - शावक के नैनों जैसे सुन्दर और चपल नयनों वाली कोई सुन्दरी फूल तोड़ रही थी. उसने अपनी भौंहो के धनुष से कटाक्ष रूपी वाण चलाकर मुझे घायल कर दिया. तबसे हाल यह है कि मैं मोह रूपी समुद्र में निमग्न हूँ . अतएव हे मेरे हॄदय धन्यवाद दो , आभार मानो उस अनिंद्य रूपसी का )
२-
एकस्मिन्दिवसावसानसमये , मैं गया था बाग में.
काचित्तत्र कुरंगबालनयना , गुल तोड़ती थी खड़ी..
तां दॄष्टवा नवयौवनां शशिमुखीं , मैं मोह में जा पड़ा.
ना जीवामि त्वया विना श्रॄणु प्रिये , तू यार कैसे मिले.
( एक दिन संध्या वेला में विहार करने के उद्देश्य से मैं बाग में गया था. वहाँ क्या देखता हूँ कि हिरण - शावक के नैनों जैसे सुन्दर और चपल नयनों वाली कोई सुन्दरी फूल तोड़ रही थी. चन्द्रमा के समान सुन्दर मुख वाली उस नवयौवना को देखकर मैं मोहपाश में आबद्ध हो गया हूँ. हे प्राण प्यारी मैं तुम्हारे बगैर जीवित नहीं रह सकता इसलिए यह बताओ कि तुमसे मिलन कैसे हो )
7 comments:
मोहपाश में आबद्ध हो गया हूँ.......
सुन्दर । बहुत ही सुन्दर ।
वाह वाह...
बेहतरीन है साहेब! अभी मन ना भरा.
sachmuch aananddaayi. yeh to pata na tha.
bahoot-bahooot badhai!sanskrit aur khari boli kaa ek saath itanaa khoobsoorat istemaal aaj bhi durlabh hai.
rochak hai, vishayvastu me vividhata hai, padhkar maza aaya. Kuchh aur doston ko forward kar rahi hun.
Kalyani
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