पिछले महीने ५ -६ दिसंबर को ( अब तो पिछले साल भी कहना पड़ेगा ) 'पहाड़' के रजत जयंती कार्यक्रम मे शामिल होने के सिलसिले में पिथौरागढ़ जाना हुआ था. उस कार्यक्रम की रपट अखबारों में प्रमुखता से छपी है . व्यकिगत रूप से यह मेरे वास्ते मित्र मिलन भी था. आयोजनकर्ताओं ने प्रतिभागियों की खूब आवभगत की. किसी किस्म की दिक्कत नहीं हुई. मेघना रेस्टोरेंट के भोजन का स्वाद अभी तक जिह्वा के कोर पर उतराया हुआ है. ६ तारीख को नगरपालिका सभागार में संपन्न ' पहाड़ सम्मान' के अवसर पर कई लोगों को टोपी पहनाई गई- मतलब कि टोपी पहनाकर सम्मानित किया गया. मंच से घोषणा होती रही और लोग टोपी पहनाकर -पहनकर खुश होते रहे, मुस्कराते रहे. निश्चित रूप से यह सम्मान - सौजन्य के प्रकटीकरण का एक बेहद सादा कार्यक्रम था- खुशनुमा और गर्मजोशी से लबरेज- न फूल , न माला , न बुके.. बस्स आदर से दोनो हाथों में सहेजी गई एक अदद टोपी और अपनत्व से नत एक शीश. उसी समय मुझे लगा कि घर पहुँचकर फुरसत से मुहावरा कोश खँगालना पड़ेगा , यह जानने के लिए कि हिन्दी में टोपी पर कितने व कितनी तरह के मुहावरे हैं . आपको यह नहीं लगता कि 'टोपी पहनाना' वाक्यांश मुहावरे की तरह इस्तेमाल होता है और उसका वह अर्थ तो आज की हिन्दी में भाषा नहीं ही होता है जो 'पहाड़' के आयोजकों की नेक मंशा थी. यही कारण था कि सभागर में विराजमान दर्शक - श्रोता टोपी पहनाने के बुलावे की घोषणा होते ही मंद-मंद मुस्कुराने लग पड़ते थे. मुहावरा कोश में मुझे टोपी पर कुल चार मुहावरे और उनके अर्थ कुछ यूँ मिले -
१. टोपी उछालना - इज्जत उतारना / अपमानित करना
२. टोपी देना - टोपी पहनाना , कपड़े देना / पहनाना
३. टोपी बदलना - भाई चारा होना
४. टोपी बदल भाई - सगे भाई न होते हुए भी भाई समान
१. टोपी उछालना - इज्जत उतारना / अपमानित करना
२. टोपी देना - टोपी पहनाना , कपड़े देना / पहनाना
३. टोपी बदलना - भाई चारा होना
४. टोपी बदल भाई - सगे भाई न होते हुए भी भाई समान
ध्यान रहे कि इन मुहावरों का संदर्भ पगड़ी से भी जुड़ा है क्योंकि टोपी के मुकाबले पगड़ी से हिन्दी के भाषायी समाज का रिश्ता निकटतर है / रहा है.
इसी प्रसंग में मैंने जब अपने निकट की बोलचाल की हिन्दी को टटोलकर देखा तो पता चला कि कबीर ने सही कहा था कि 'भाखा बहता नीर'. कोश -थिसारस आदि किताबें हैं - दस्तावेज , प्रामाणिक संग्रह किन्तु इनकी सीमाओं के पार भाषा और उसकी प्रयुक्ति की एक ऐसी दुनिया है जो रोज बन रही है व बदल रही है. हमारी अपनी हिन्दी रोज नई चाल में ढल रही है और नए - नए मुहावरे अपनी नई नई अर्थछवियों के साथ नित्य उदित और उपस्थित हो रहे हैं. मैं कोई भाषाविद नहीं हूँ , इसलिए मेरे पास इस बात का कोई प्रमाण नहीं है कि बता सकूँ इनमें से कितने मुहावरा कोश ग्रंथों में सहेजे जा चुके हैं. आइए एक नजर उन दस मुहावरों पर डालते हैं जो हिन्दी के नये रंग में अपनी छटा बिखेर रहे हैं -
१. चिड़िया लगाना / चिड़िया बिठाना
२. चाय पानी करना / चाय पानी करवाना
३. सुविधा शुल्क देना / लेना
४. झंड होना / झंड करना
५. फंडे देना / फंडू होना
६. सेटिंग करना / सेटिंग करवाना
७. लाइन मारना / लाइन देना
८. गोली देना
९. सैट होना / टैट होना
१०. पतली गली पकड़ना / पतली गली से निकल लेना
ऊपर दिए गए मुहावरों का क्रम दस पर ही बस नहीं होता है.ऐसे ढेरों मुहावरे हैं / होंगे जिनका प्रयोग धड़ल्ले से हो रहा है. इसीलिए ऊपर जानबूझ कर उनके अर्थ भी नहीं दिए गए क्योंकि ये सब आज की बोलचाल की हिन्दी का हिस्सा हैं.शुद्ध हिन्दी ,मानक हिन्दी, परिष्कृत हिन्दी, परिनिष्ठित हिन्दी, संस्कारवान हिन्दी, चालू - चलताऊ हिन्दी, असली हिन्दी, हिंगलिश, जैसी कई तरह की हिन्दी हमारे निकट विद्यमान है. सवाल यह है कि हमें अपने जीवन संस्कार में भाषा के किस संस्कार को अपनाना है . जो भी हो मुहावरे हर तरह की हिन्दी में हैं .मैंने तो अपने आसपास सुनाई देने वाली हिन्दी से कुछ मुहावरेदार नमूने पकड़े और पेश किए हैं . अगर इनसे किसी को किसी तरह की असुविधा लगे तो क्षमा चाहते हुए इतना ही कहना है कि ये भाषा की परिधि में मौजूद हैं - ये आपकी, मेरी भाषा का अविभाज्य अंग बनें या न बनें यह चुनाव नितांत वैयक्तिक है परंतु उनकी सामाजिक उपस्थिति से कतई इनकार नहीं किया जा सकता.
खैर,आपने यह पोस्ट पढ़ी. आभार. अब तो भलाई इसी में है कि मैं पतली गली से निकल...नहीं नहीं फूट ही लेता हूँ
9 comments:
भाई फ्लैट कर दिया !
चिड़िया तो बैठा दी दाना कौन डालेगा? :)
बहुत खूब ...ये पतली गली ही आपको उस खाला के घर ले जाएगी जिसे हिन्दी कहते हैं...वर्ना भाई लोगों ने तो हिन्दी की हिन्दी करने में कोई कसर नही छोड़ी।
बताइये तो हिन्दी करना मुहावरा कहां से आया ?
इसकी तो हिन्दी कर दी ?
अच्छी पोस्ट। शुक्रिया ।
बढिया पोस्ट सिद्धेश्वर जी। लेकिन क्या आपने गौर किया था कि बार-बार टोपी पहनाने की घोषणा करने वाले शेखर पाठक जी के चेहरे पर भी शरारत भरी मुस्कराहट थी। पहाङ का समारोह सचमुच सादगी भरा लेकिन बहुत ही सार्थक प्रयासों की जानकारी देने वाला रहा।
बहुत सही...चलिए काफ़ी अच्छे अच्छे मुहावरे आपने आज बताये ..........
दादा
नये साल की पहली राम राम.
ख़ूब कही आपने. हिन्दी की चिंदी में कपड़े फ़ाड़ना जैसे मुहावरे नाहक ही अवाम की ज़ुबान पर चढ़ गये.मुहावरों को लिखने या सुनते एक हल्की सी मुसकान और वाह भी निकल जाया करती है. जैसे मेरे अंचल की बोली (अजित भाई कुछ याद आया मेरा पुराना इसरार) मालवी में किसी काम को करना और मुश्किल में ख़ुद ही फ़ँस जाने के लिये एक प्यारा मुहावरा है...भाटो फ़ैंकी ने माथो माड्यो..यानी आसमान में पत्थर उछाला और ख़ुद उसके नीचे अपना सर बिछा दिया. कैसा प्यारा रूपक है इस बात में...
लम्बी कह गया.मुआफ़ करें.अजित वडनेरकर की रहनुमाई में देवनागिरी में लिखी जाने वाली (हिन्दी,मराठी,राजस्थानी,हरियाणवी,भोजपुरी,अवधि आदि)भाषा में मुहावरों का एक ब्लॉग शुरू करने की पेशकश होना चाहिये . इन भाषाओं की सहोदर उप-बोलियों (जैसे राजस्थानी की मालवी) को भी उसमें शुमार किया जाना चाहिये. वरना अगली पीढ़ी इन तमाम चीज़ों से बेख़बर हो भाषा का विन्यास भूलती ही जाएगी.
संजय दद्दा,
आपका ठप्पा इस पोस्ट माने यह ठीकठाक है. सचमुच बहुत अच्छा लगा. दद्दा मैं तो ''नित खैर मंगां..."
अच्छे अच्छे मुहावरे आपने बताये...
संजय भाई,
बढ़िया सुझाव है। जल्दी ही इस पर करते हैं कुछ।
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