Thursday, January 29, 2009

लम्बूद्वीप, नकली बघीरे की आवाज़ और भूसा

उमर खैयाम की कनगू (कानों से निकला जाने वाला मटेरियल) से अपनी खैनी को स्वादिष्ट बनाने के शौकीन पिलपिल 'झूंसवी' नामक एक शायर के घर जब उस बालक का अवतरण हुआ तो जम्बूद्वीप के नभ पर मेघ छाये हुए थे. बिजली रह रह कर कड़क रही थी जब एक दैववाणी ब्रॉडकास्ट हुई पर मौसम के खराब होने की वजह से कोई भी उसे ठीक तरह नहीं सुन पाया.

दैववाणी के हिसाब से जम्बूद्वीप का टैम खराब चल्लिया था जिसे और भी खराब बनाने के महती अनुष्ठान में अपना योगदान करने की नीयत से देवताओं ने जम्बूद्वीप का नाम लम्बूद्वीप करने का निर्णय कर लिया था. लम्बूद्वीप में रहने वाले लोगों को एक सहत्राब्दी के वास्ते एक टैम्प्रेरी देवता टाइप लपड़झप्प की आवश्यकता हुई सो उक्त पिलपिल शायर के घर पर अवतरित हुए बालक को लम्बू नाम दे कर देवताओं ने अपना काम पूरा किया. ऐतिहासिक दृष्टि से देखा जाय तो सद्यःस्वतन्त्रताप्राप्त लम्बूद्वीप में रहने वाले नागरिकों ने किसी दैवीय प्रेरणा के प्रभाव में आ कर अपनी खाल में जहां मौका लगे भुस भरा लेने का कौल उठा लिया.

उक्त लपड़झप्प लम्बू को नकली बघीरे की आवाज़ निकालने का कुटैव बचपन से ही लग गया था. इस चक्कर में वह अपनी नैसर्गिक आवाज़ ही खो बैठा (उसके मां-बाप-भाई-चचा-मामू इत्यादि से इस तथ्य की तस्दीक करा लेने के उपरान्त ही यह लिख पाने की छूट ले पा रहा है इन पंक्तियों का नाचीज़ लेखक). नकली बघीरे की ध्वनि सुनकर लम्बूद्वीप के निवासी मुदित होते और भूसे के ढेरों पर बैठे नकली ताली बजाया करते. उनकी देहों में इतना भूसा भर चुका था कि अब कतई जगह नहीं बची थी. लेकिन उनका भूसप्रेम इस कदर उन के सर पर बतर्ज़ फ़िराक गोरखपुरी सौदा बन कर सवार था कि वे भूसे को देखते ही अपना होश खो बैठते और बच्चों के हाथों के पिलास्टिक की थैलियां थमा कर अपने आसपास के माहौल को भूसीकृत किये जाते.

भुस भरे जाने का व्यवसाय अब सबसे सफल इन्डस्ट्री और भुस भरवाए जाने का अपरिहार्य कर्तव्य आधुनिक धर्म के रूप में प्रतिष्ठित हो चुका था. भूसदेवता नामक काल्पनिक दैत्य का गोल मन्दिर दिल्ली नामक चौर्यस्थल में स्थापित किया जा चुका था.

पहले के समय में भुस भरे जाने के लिए आदमी की खाल में चीरा लगाया जाना होता था. दर्द के मारे आदमी चीखते थे और बाकी के अनभुसे आदमी उसके सपोर्ट में आ जाया करते थे. इस अवांछित गतिविधि से निजात पाने को भूसदेवता ने बहुत सारी कमेटियां बिठाईं जिनकी सलाहों को फ़ॉलो करते हुए लेज़र से भुस भरे जाने का ठेका अमरीका की कुछेक फ़र्मों को दिया गया.

नकली बघीरे की आवाज़ निकालने को लम्बूद्वीप में कला का शीर्षस्थ पैमाना घोषित किया गया.

( लम्बूद्वीप की कथा जारी है ... )

5 comments:

विजयशंकर चतुर्वेदी said...

बाउंसर है गुरु, जोएल गार्नर का बाउंसर! भर्ती होने जा रहा हूँ अस्पताल में.

शिरीष कुमार मौर्य said...

ई कनगू अउर खइनी के मेल वाला पदारथ और लम्बूदीप का जिकर - "आह-आह" अएर का कहिते हैं "वाह-वाह" !
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अल्लाह करे `ये लपक´ और भी जयादा !

योगेन्द्र मौदगिल said...

Subhaan-allah.......

महेन said...

स्वोलिड!!!

एस. बी. सिंह said...

अब मुदित न हों तो क्या करें आख़िर दिमागों में भूसा जो भरा था.................