गामा
पहलवान अब हमारे महादेश की किंवदन्तियों का अभिन्न हिस्सा बन चुके हैं. उन्हें याद
करना एक अनन्त नोस्टैल्जिया को जगाता है. बचपन में मेरे पास एक छोटी सी किताब थी.
इसमें भारत की चुनिन्दा विभूतियों के बारे में छोटे-छोटे आलेख थे. गामा पहलवान
वाला टुकड़ा मुझे बेहद लुभाता था. किताब तो अब न जाने कहां की कहां गई. उसी को याद
करते हुए मैंने यह आलेख कुछ समय पहले नवभारत टाइम्स के लिए लिखा था. आज आप के लिए
पेश कर रहा हूं:
पहलवानों और उनकी ताक़त के बारे में तमाम झूठे-सच्चे क़िस्से हमारी
भारतीय सांस्कृतिक-सामाजिक परम्परा के अभिन्न हिस्से हैं. मिसाल के तौर पर पंजाब
के मशहूर पहलवान कीकर सिंह सन्धू को लेकर यह क़िस्सा चलता है कि एक बार उनके उस्ताद
ने उनसे दातौन करने के लिए नीम की पतली टहनी मंगवाई. कीकर सिंह जैसे शक्तिशाली
पहलवान को लगा कि गुरु के लिए एक टहनी लेकर जाना गुरु की और स्वयं उनकी तौहीन
होगा. सो कीकर सिंह ने समूचा नीम का पेड़ जड़ से उखाड़ डाला और कांधे पर धरे उसे ले
जा कर अखाड़े में पटक डाला.
इस क़िस्से में कितनी सच्चाई है, सबूतों के न
मिलने के कारण कहा नहीं जा सकता लेकिन भारतीय उपमहाद्वीप से उभरा पहला चैम्पियन
पहलवान अब किंवदन्तियों और मुहावरों का हिस्सा बन चुका है. इस चैम्पियन का नाम था
गामा पहलवान. कद्दावर पहलवान मोहम्मद अज़ीज़ के घर १८८२ में अमृतसर में जन्मे
रुस्तम-ए-ज़माना गामा का असली नाम ग़ुलाम मोहम्मद था. गामा की असाधारण प्रतिभा का
प्रमाण यह तथ्य है कि क़रीब पचास साल के पहलवानी करियर में उन्होंने कोई पांचेक
हज़ार कुश्तियां लड़ीं और उन्हें कभी भी कोई भी नहीं हरा सका.
दस साल की आयु में गामा ने जोधपुर में आयोजित शक्ति-प्रदर्शन के एक
मुकाबले में हिस्सा लिया. इस आयोजन में क़रीब चार सौ नामी पहलवानों ने भागीदारी की
थी और गामा अन्तिम पन्द्रह में जगह बना सकने में क़ामयाब हुए. इस से प्रभावित
जोधपुर के तत्कालीन महाराजा ने गामा को विजेता घोषित कर दिया. इस के बाद के कुछ साल
गामा की कड़ी ट्रेनिंग का सिलसिला चला. उन्नीस साल की आयु में गामा ने भारतीय
चैम्पियन रहीम बख़्श सुलतानीवाला को चुनौती दी और दो राउन्ड तक चले कड़े मुकाबले के
बाद क़द अपने से कहीं बड़े रहीम बख़्श को धूल चटा दी.
इस कुश्ती के बाद गामा का रुतबा बढ़ता गया और १९१० के आते-आते भारतीय
उपमहाद्वीप में मौजूद सारे पहलवान उनसे हार चुके थे. इसी साल आर. बी. बेन्जामिन
नामक एक प्रमोटर गामा और उसके छोटे पहलवान भाई इमाम बख़्श को लेकर इंग्लैंड पहुंचा
जहां यूरोप भर के पहलवानों गामा ने चुनौती दी कि वे तीस मिनट के भीतर किसी भी भार
वर्ग के किन्हीं तीन पहलवानों को हरा देगा. इस चुनौती को किसी ने भी गम्भीरता से
नहीं लिया. आख़िरकार गामा ने पोलैंड के विश्व चैम्पियन स्टेनिस्लॉस बाइज़्को और
फ़्रैंक गोच को ललकारा. अन्ततः अमरीकी पेशेवर पहलवाम बेन्जामिन रोलर ने गामा की
चुनौती स्वीकार की. १ मिनट ४० सेकेण्ड चले इस कुश्ती के पहले राउन्ड में गामा ने
रोलर को चित कर दिया. इसके बाद गामा ने फ़्रांस के मॉरिस डेरिआज़, स्विट्ज़रलॅण्ड के जॉहन लेम और स्वीडन के जेस पीटर्सन को पटखनी दी.
अन्ततः गामा की चुनौती को स्टेनिस्लॉस बाइज़्को ने स्वीकार किया. १०
सितम्बर १९१० को हुए इस एकतरफ़ा मुकाबले में गामा ने अपना झण्डा गाड़ दिया. १७
सितम्बर को इन्हीं दो के बीच एक और मुकाबला होना था पर बाइज़्को डर के मारे आया ही
नहीं और गामा को विश्व-चैम्पियन की जान बुल बेल्ट से नवाज़ा गया. इसके बाद गामा ने
कहा कि वह एक के बाद एक बीस पहलवानों से मुकाबला करना चाहता है. उसने शर्त रखी कि
एक से भी हार जाने पर वह इनाम का सारा खर्चा देगा. लेकिन किसी की हिम्मत नहीं हुई.
भारत वापस आने के कुछ समय बाद गामा का एक और मुकाबला रहीम
सुलतानीवाला से हुआ. गामा ने यह मुकाबला जीता और रुस्तम-ए-हिन्द का अपना ख़िताब महफ़ूज़
रखा. इसके बाद उसने एक और बड़े पहलवान पंडित बिद्दू को मात दी. बाद के सालों में
गामा के करियर का सबसे उल्लेखनीय साल है १९२७ जब उसने स्टेनिस्लॉस बाइज़्को को
मात्र २१ सेकेन्ड में पराजित कर दिया था.
विभाजन के बाद गामा पाकिस्तान चला गया जहां १९६० में उसका देहावसान
हुआ. मृत्यु के कुछ वर्ष पहले दिये गए एक इन्टरव्यू में गामा ने रहीम सुलतानीवाला
को न सिर्फ़ अपना सबसे महान प्रतिद्वंद्वी बताया, उसने कहा:
"हमारे खेल में अपने से बड़े और ज़्यादा क़ाबिल खिलाड़ी को गुरु माना जाता है.
मैंने उन्हें दो बार हराया ज़रूर, पर दोनों मुकाबलों के बाद
उनके पैरों की धूल अपने माथे से लगाना मैं नहीं भूला."
13 comments:
अशोकजी। लेख दिलचस्प है। ऐसा कहते हैं कि गामा पहलवान को इंदौर के ख्यात पहलवान मास्टर चंदगीराम ने हराया था। यहां इंदौर के श्री रतन पाटोदी कुश्ती पर पिछले पचास सालों से पहलवानी पर एक मैग्जीन प्रकाशित करते हैं। मैंने दैनिक भास्कर के लिए उनसे एक इंटरव्यू किया था। वह भास्कर के इंदौर में पचीस साल पर प्रकाशित खास श्रृंखला में छपा था। मैं रतनदादा से इस बारे में तथ्यात्मक जानकारी लेकर बताता हूं।
मेरे बूबज्यु तो कहा करते थे की गामा पहलवान पहाड़ी थे. और वे जितने पुराने थे मैं उन्हें उससे ज़्यादा पुराने समझता था.
दिलचस्प मामला है.
गामा पहलवान के किस्से बचपन में अपने दादा से खूब सुने...थोड़ा सा अपने से अधिक क्षमता वाला काम करने पर वो पीठ ठोकते हुए कहते वाह मेरे गामा पहलवान शाबाश...उनके बारे में बहुमूल्य जानकारी दी है आपने..,शुक्रिया.
नीरज
Dajyu, bahut bariya aalekh, ye sab aaj pata chala warna me bhi pahari samjh tha ;)
गामा के बाद फ़्री स्टाइल किंग कांग दारा सिंह का ज़माना आया और अब ड्ब्लूडब्लुएफ़ का ज़माना है- खली ने नाम की बली हो रही है!!
GAMA ji ke baare mai mujhe pahli baar itna kuchh janne ko mila.
गामा पहलवान के बारे मे पढ़ कर अच्छा लगा पहले तो लगता था गामा एक किद्व्नती है
बचपन से जिसके बारे में सुनते आरहे थे उसके बारे में विस्तार से जान कर अच्छा लगा।
रवीन्द्र भाई
मेरे ख्याल से मास्टर चन्दगी राम द्वारा गामा को हराए जाने की कोई तार्किक संभावना नहीं बनती. चन्दगी राम का दौर साठ और सत्तर का दशक रहा था. जबकि गामा तो सन साठ में अल्लाह मियां के प्यारे हो गए थे.
हां अगर इन्दौर में कोई दूसरे मास्टर चन्दगी राम थे तो उस बारे में मुझे कोई जानकारी नहीं.
आशा है आप रतन दादा से इसकी तस्दीक करेंगे.
धन्यवाद!
अब तक गामा नाम के किसी धाकड़ पहलवान की इमेज ही हमारे सामने होती थी। उससे रू ब रू मिलवाने के लिए आभार
सूरज
पांडेय जी, ज्ञानवर्द्धन किया, मजा आया। ब्रेख्त ने कहा है साहित्य का उद्देश्य मनोरंजन करना है ज्ञान-विज्ञान से लैस पीढ़ी का और यह काम पूरे विस्तार और वैविध्य के साथ कबाड़खाना कर रहा है। कहने को तो यह सामूहिक सर्जनात्मकता का मंच है लेकिन आपका योगदान और सरोकार सर्वोपरि है। सलाम-नमन आपकी सर्जनात्मकता का।
आखिर में एक बात बतायें ऑक्सफोर्ड प्रकाशन से एक किताब छपी है अगर उसके किसी अंश को अनूदित करके किसी ब्लाग पर डालना हो तो क्या प्रकाशक से अनुमति लेनी होगी या साभार से काम चल जाएगा।
Bahut bahut dhanywad jo gaama ke bare me jankari di
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