Friday, March 27, 2009

आतंकवादी देखता है

किसी तेज़ फ़िल्म की तरह चलती है यह डरा देने वाली कविता. शिम्बोर्स्का की यह कविता दुनिया भर में अपने कथ्य की वजह से बहुत बहुत मशहूर हुई.

आतंकवादी देखता है

तेरह बीस पर बम फटेगा शराबख़ाने के भीतर
अभी बजा है बस तेरह सोलह.
अभी समय है कुछ लोग भीतर जा सकते हैं
कुछ आ सकते हैं बाहर.
आतंकवादी सड़क पार कर चुका है.
वह ख़तरे से पर्याप्त दूरी पर है और
क्या नज़ारा है! - बिल्कुल फ़िल्मों जैसा
पीली जैकेट वाली एक औरत - वह भीतर जा रही है
काला चश्मा लगाए वह आदमी - वह बाहर आ रहा है
जीन्स पहने लड़के बतिया रहे हैं
तेरह सत्रह और चार सेकेंड
तकदीर वाला है वह ठिगना - स्कूटर पर बैठ कर जा रहा है
और वह लम्बा वाला - वह भीतर जा रहा है.
तेरह सत्रह और चालीस सेकेंड.
वह लड़की - वह चहलकदमी कर रही है, उसके बालों में हरा रिबन
लेकिन तभी एक बस रुकती है उसके सामने.
तेरह अठारह.
अब नहीं है वह लड़की वहां.
क्या वह इतनी बेवकूफ़ थी!
पता नहीं वह भीतर गई या नहीं.
हम देख लेंगे जब उन्हें बाहर लाया जाएगा.
तेरह उन्नीस.
फ़िलहाल कोई नहीं जा रहा भीतर.
एक और मोटा-गंजा बाहर आ रहा है अलबत्ता.
एक सेकेंड, लगता है वह कुछ ढूंढ़ रहा है जेबों में
और तेरह बीस से दस सेकेंड पहले
वह भीतर जा रहा है
अपने घटिया दस्तानों के लिए.
ठीक तेरह बीस.
उफ़ यह इन्तज़ार! कितना लम्बा!
अब.
किसी भी पल.
नहीं.
अभी नहीं.
हां, अब.
बम फटता है.

8 comments:

अनिल कान्त said...

इस लेखक की जितनी तारीफ़ की जाए वो कम है

Unknown said...

sabhi anuvaad bahut achchhe hain, yaani pravahmaan hain. shimborska ki chintaayen badi hain, magar unhen zaahir karne ka unka tareeqa bahut sahaj, aatmiya, kalpanasheel, witty aur ironical hai. yathaarth bhayaavah bhi ho to use saamne laane ka dhang paathakon ko dabochane, aakraant karne & apne jnaan, soochanaaon & vivaranon se aatankit karnevaala nahin hona chaahiye------yahi shimborska ki wah salaahiyat ya vishishtata hai, jo hindi ke kuchh kaviyon ke sandarbh mein bahut praasangik & maaniqhez hai.

ashok pandey ne iske alaawa shuntaro taanikawa ke jo anuvaad kiye hain, wah kitaab mere paas hai & uske liye hamesha main unka ehsaanmand rahoonga. nishchay hi ve mahaan hain, kyonki anuvaad tabhi prabhaavshaali & utkrishta ho sakta hai, jab swayam anuvaadak bhi kavi ki mahaanta ke samkaksha rahkar usse koi samvaad kar paane mein saksham ho.

---pankaj chaturvedi
kanpur

शोभा said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति अशोक जी। बधाई स्वीकारें।

Ek ziddi dhun said...

पंकज भाई की टिप्पणी - सोने पे सुहागा।
पर पंकज भाई हिंदी फॉन्ट

मुनीश ( munish ) said...

Yes we r being WATCHED !!

ओम आर्य said...

बम फोड़ने वाले के भीतर भी कोई बम तो फूटता हीं होगा!!!

ravindra vyas said...

कमाल।

Uday Prakash said...

अद्भुत ! टाइमबम जैसी कविता...अपना समय लेकर आखीर में ...विस्फोट!
बधाइयां हमेशा के लिए...