Sunday, March 29, 2009

जीवन कितना भी बड़ा हो बायोडाटा छोटे ही अच्छे माने जाते हैं

शिम्बोर्स्का की कविताओं की सीरीज़ में फ़िलहाल में यह आख़िरी कविता लगा रहा हूं. दोबारा किसी उचित मौके पर उन पर एकाध और सीरीज़ यहां लगाने का विचार मन में पक्का किया हुआ है.



बायोडाटा लिखना

क्या किया जाना है?
आवेदनपत्र भरो
और नत्थी करो बायोडाटा

जीवन कितना भी बड़ा हो
बायोडाटा छोटे ही अच्छे माने जाते हैं.

स्पष्ट, बढ़िया, चुनिन्दा तथ्यों को लिखने का रिवाज़ है
लैंडस्केपों की जगह ले लेते हैं पते
लड़खड़ाती स्मृति ने रास्ता बनाना होता है ठोस तारीख़ों के लिए.

अपने सारे प्रेमों में से सिर्फ़ विवाह का ज़िक्र करो
और अपने बच्चों में से सिर्फ़ उनका जो पैदा हुए

तुम्हें कौन जानता है
यह अधिक महत्वपूर्ण है बजाए इस के कि तुम किसे जानते हो.
यात्राएं बस वे जो विदेशों में की गई हों
सदस्यताएं कौन सी, मगर किसलिए - यह नहीं
प्राप्त सम्मानों की सूची, पर ये नहीं कि वे कैसे अर्जित किए गए.

लिखो, इस तरह जैसे तुमने अपने आप से कभी बातें नहीं कीं
और अपने आप को ख़ुद से रखा हाथ भर दूर.

अपने कुत्तों, बिल्लियों, चिड़ियों,
धूलभरी निशानियों, दोस्तों, और सपनों को अनदेखा करो.

क़ीमत, वह फ़ालतू है
और शीर्षक भी
अब देखा जाए भीतर है क्या
उसके जूते का साइज़
यह नहीं कि वह किस तरफ़ जा रहा है-
वह जिसे तुम मैं कह देते हो
और साथ में एक तस्वीर जिसमें दिख रहा हो कान
- उसका आकार महत्वपूर्ण है, वह नहीं जो उसे सुनाई देता है.
और सुनने को है भी क्या?
-फ़क़त
काग़ज़ चिन्दी करने वाली मशीनों की खटरपटर.

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(फ़ोटो: 'लिटरेरी लाइफ़' पत्रिका के दफ़्तर में विस्वावा शिम्बोर्स्का, जनवरी १९६१. १९५३ से १९८१ के दरम्यान शिम्बोर्स्का ने इस पत्रिका में बतौर कविता-सम्पादक और स्तंभकार कार्य किया)

14 comments:

वर्षा said...

आज तो अच्छी कविताएं पढ़ने का दिन था।

संध्या आर्य said...
This comment has been removed by the author.
शिरीष कुमार मौर्य said...

मैंने ये सभी और बाकी कविताओं के अनुवाद आपके हस्तलेख में पढ़े हुए हैं। अगली श्रृंखला का इंतज़ार अभी से है। शानदार अनुभव रहा!

Unknown said...

itni achchhi kavita , lagta hai, jaise ek lambe arse se nahin parhi hai. paai shirshak kavita bhi shaandaar hai.
ashok pande ji ka hamesha aabhaari rahoonga !

---pankaj chaturvedi

kanpur

मुनीश ( munish ) said...

shandaar! Ashok bhai kabhi vaqt mile to 'Ode on a Grecian Urn' ka anuvaad padhva dein . Romantic movement ke Shelly,Browning,Byron evam Wordsworth ko bhee jageh den choonki ye college mein shayad sabne padhe hain to nostalgiyana mahol bhee ban jayega!
'Elegy written in a country churchyard ' bhee yad aa rahee hai.

मुनीश ( munish ) said...

saath mein kuchh victorian tasveeren aur landscapes bhee hon to sabhee ko i think badhiya lagega , baqi ap jaisa theek samjho.

दीपा पाठक said...

कबाडखाना पर विस्वावा शिम्बोर्स्का की कविताएं पढ कर हमेशा अभिभूत हो जाती हूं, कितना पैना होता है हर चीज पर उनका विश्लेषण, कितनी दूर तक देख पाती है उनकी नजर। धन्यवाद शानदार कविताएं पढवाने के लिए।

ravindra vyas said...

अपने कुत्तों, बिल्लियों, चिड़ियों,
धूलभरी निशानियों, दोस्तों, और सपनों को अनदेखा करो.

shaandaar! aur badhai!

विजयशंकर चतुर्वेदी said...

छोटे लोगोने ने गलती से अगेर बदीब्बातें कह दी हों तो माफ़ कर दीजिएगा. अशोक भाईईईईईईईए!

सुशील छौक्कर said...

सुबह सुबह आनंद आ गया।

naveen kumar naithani said...

बहुत अच्छी कविता का बेहद खूबसूरत अनुवाद.
..ऒर अपने बच्चों में सिर्फ़ उनका जो पैदा हुए.
आभार.

विजय गौड़ said...

बहुत ही सुंदर कविता है। चयन और पढवाने के लिए आभार।

हेमन्‍त वैष्‍णव said...

apke blog ke bare me kahne ke shabd nhi hai bhut bhut aur bhut pasand aya ap mujhe hemantshrc@gmail.com me jarur bheje

hemant raipur
chhattisgarh

Jyoti Joshi Mitter said...

very nice!