चुनाव प्रचार में भाजपा काला धन वापस लाने का कनकौव्वा उड़ा रही है. जबकि भाजपा अच्छी तरह जानती है कि विदेशों में जमा काला धन यज्ञ-हवन करके वापस नहीं लाया जा सकता है. हाँ, धर्मगुरुओं के आशीर्वाद से धन जमा करने वालों का पता अवश्य लगाया जा सकता है. काला धन विदेश में रखने वाले भी उन्हीं के चेले होते हैं और आशीर्वाद लेकर चुनाव जीतने वाले भी. आडवाणी जी ने अभी कहा भी था कि वह साधु-संतों और धर्मगुरुओं से मार्गदर्शन लेते रहेंगे. कुछ वर्ष पहले धर्मगुरुओं के मार्गदर्शन में 'काले' को 'सफेद' बनाया जा रहा था जिसका स्टिंग ओपरेशन हुआ था, पता नहीं लोग उसे क्यों भूल गए? उसका कोई नामलेवा नहीं! बाबा रामदेव भी चुनाव के समय वह मामला नहीं उठाते जबकि 'राष्ट्र का जिम्मेदार नागरिक' होने के नाते काला धन वाले मुद्दे पर उन्होंने कांग्रेस की कम घेराबंदी नहीं कर रखी है.
ताजा हल्ला के अनुसार भारतीयों के १४५६ अरब डॉलर नकद रूप में स्विस बैंकों में रखे हुए हैं. यह सफ़ेद नहीं काला धन है. एक आँकड़ा और है- अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने देश की अर्थव्यवस्था में थोड़ी जान फूंकने के लिए जो ताज़ा स्टिम्युलस पैकेज मंजूर करवाया है वह राशि है ८३० अरब डॉलर. इसका अर्थ यह हुआ कि सिर्फ स्विस बैंकों में जमा भारतीयों का काला धन अमेरिकी स्टिम्युलस पैकेज से ६२५ अरब डॉलर अधिक है. रेखांकित करने वाली बात यह है कि यह मात्र स्विस बैंक में जमा काला धन है. भारतीयों के लिए मॉरीशस तो काला धन गलाने और कर चोरी का स्वर्ग है. वहां का पिटारा खुले तो क्या हाल हो!
अगस्त 1982 में भारत और मॉरीशस के साथ एक कर संधि हुई थी जिसको 'डबल टैक्सेशन एवोइडेन्स ट्रीटी' कहा जाता है. भारत ने इस संधि के तहत मॉरीशस निवासियों को भारत में शेयर की खरीद बिक्री पर हुई कमाई पर टैक्स न लेने का वचन दिया था. इसी तरह की छूट मॉरीशस ने भी दी.. भारतीय निवेशक राउंड ट्रिपिंग करते हैं. इसके तहत निवेशक विदेश में जाकर मॉरीशस के रास्ते धन वापस भारत ले आते हैं.
काला धन छिपाने के धरती पर जो अन्य स्वर्ग हैं- जैसे मलयेशिया, फिलीपीन्स, उरुग्वे, कोस्टारिका, सिंगापुर, स्विट्जरलैंड, बहामा, बरमुडा, ब्रिटिश वर्जिन आइलैंड और केमैन आइलैंड आदि- इनके नाम तो सब बता देंगे, लेकिन यहाँ कितने भारतीयों का कितना काला धन छिपा है, और इन भारतीयों में कितने कांग्रेसी हैं, कितने भाजपाई, कितने हिन्दू, कितने मुसलमान, कितने सिख, कितने ईसाई और इस मामले में ये सब हैं कितने बड़े मौसेरे भाई, यह कौन बताएगा?
ऑर्गनाइजेशन ऑफ इकोनामिक को-ऑपरेशन एंड डेवलपमेंट (ओईसीडी) ने काले धन की निकासी में सहयोग न करने वाले देशों की काली सूची जारी की है और अनुमान व्यक्त किया है कि काले धन की सैरगाह बने देशों में १७०० अरब डॉलर से ११५०० अरब डॉलर मूल्य के दायरे में परिसंपत्तियाँ जमा हैं. यहाँ आप गणित लगा लीजिये कि यह काला धन 'जी-२०' नेताओं द्वारा वैश्विक अर्थव्यवस्था को उबारने के लिए प्रस्तावित की जाने वाली राशि के मुकाबले दस गुना से भी अधिक है.
स्विस बैंकों का तो हाल यह है कि वहां खातादार का नाम पता होता ही नहीं, एक कोड नंबर होता है. यह कोड नंबर खातादार की धर्मपत्नी और धर्मबच्चों तक को वे नहीं बताते. आपका तलाक हो जाने अथवा वसीयत जैसे कानूनी मामले में भी ये बैंक आपके खाते की गोपनीयता भंग नहीं करते. और नाम खुल जाने के भय से खातादार भी भला क्यों किसी को बताएगा. इतना जरूर होता है कि खातादार की मौत के बाद अगर जमा राशि पर ७ से १० वर्ष के बीच किसी ने दावा नहीं किया तो वह पूरी राशि बैंक की हो जाती है. क्या पता कुछ पूज्य महात्मा अपनी नश्वर किन्तु पार्थिव देह का परित्याग करने से पूर्व अपने बीवी-बच्चों को वह कोड नंबर बता भी जाते होंगे!
स्विट्ज़रलैंड में दुनिया भर का काला धन छिपाने के कारोबार में एक-दो नहीं पूरे ४०० बैंक लगे हुए हैं. इनमें से करीब ४० शीर्ष बैंक बेनामी खाता खोलने की सुविधा देते हैं. यूबीएस और एलटीजी ऐसे ही बाहुबली स्विस बैंक हैं. खाता खोलने के लिए आप एक पत्र भेज दें, बस हो गया काम. बेनामी खाता खुलवाने के लिए सिर्फ एक बार आपको व्यक्तिगत रूप से बैंक में उपस्थित होना पड़ता है. फिर आप चाहें तो खाता ऑनलाइन संचालित करें या फ़ोन पर आदेश देकर. आपके खाते की गोपनीयता कायम रखने के लिए स्विस सरकार ने ऐसे नियम बनाए हैं कि अगर किसी बैंक अधिकारी या कर्मचारी ने राज खोला तो उसे सश्रम कारावास दिया जा सकता है. स्विस बैंकों के लिए यह कोई गुनाह ही नहीं है कि खातादार ने अपने देश में कर चोरी करके पैसा उनके यहाँ जमा किया है. स्विस कानून में आपके लिए कमाई और संपत्ति का ब्यौरा देने की भी कोई बाध्यता नहीं है.
सन् १९३४ के बाद से बैंकिंग गोपनीयता का कानून स्विस सरकार ने दीवानी से बदलकर फौज़दारी कर दिया था. इसके तहत हथियारों की अवैध बिक्री और नशीली दवाओं की तस्करी के जरिए हुई कमाई के मामलों में गोपनीयता के नियम थोड़े शिथिल किये गए थे. लेकिन सवाल यह है कि किस मुद्रा में लिखा होता है कि वह किस ढंग से कमाई गयी है. करोड़ों-अरबों के भारतीय रक्षा सौदों तथा उनमें वसूला गया कमीशन किस रास्ते से कहाँ पहुंचा, कोई इसका माई-बाप आज तक पता चला है क्या? क्वात्रोची का ही कोई क्या उखाड़ पाया?
विदेशों से काला धन वापस लाने की एक सूरत हो सकती है. जिस तरह कुछ वर्ष पहले 'ब्लैक' को 'व्हाइट' करने के लिए केंद्र सरकार ने देश में एमनेस्टी स्कीम चलायी थी उसी तरह काला धन वापस लाने वालों के लिए एमनेस्टी स्कीम चलाये और उनकी पहचान स्विस बैंकों की ही तरह गुप्त रखे. तब संभव है कि कुछ धर्मात्मा भारतीय जीव भारत के भूखों-नंगों पर तरस खाकर अपना धन यहाँ लगा दें. गणित लगाइए कि अगर एक प्रतिशत काला धन भी लौट आया तो वह कितने खरब होगा?
5 comments:
चतुर्वेदी जी, ये बात तो बच्चा भी जानता है कि देश में कौन अधिक समय सत्ता में रहा और ये भी हर कोई जानता है कि देश में भ्रष्टाचार की "माँ" कौन सी पार्टी है… अब सीधा सा आसान गणित बताईये कि किस पार्टी का अधिक पैसा स्विस बैंकों में जमा होगा? सो किसे अधिक तकलीफ़ होगी या होनी चाहिये?
चिपलूणकर जी, आप बखुशी उस पार्टी का नाम ले सकते हैं मुझे कोई दुःख नहीं होनेवाला. लेकिन मैं इतना निवेदन करना चाहता हूँ कि जब तक आपके सामने कोई प्रमाण नहीं है तब तक आप मात्र भावना के वशीभूत होकर ही किसी निर्णय पर पहुँच सकते हैं.
विजय जी आपकी पोस्ट में काला धन, भाजपा,धर्मगुरू आदि के उल्लेख से जावेद अख़्तर का एक भाषण याद आ रहा है, जिसमें उन्होने कहा था की दुनिया भर के कारोबारों में अवैध हथियारों के व्यापार के बाद दूसरे नंबर पर अध्यात्म का ही कारोबार है.
Vijay babu the last para of ur post says it all. This is the only way out.Thanx for an important and informative analysis .
You will win more readers,however, if u can refrain from taking sides and be more objective . Ur political writing will shine if u can keep it unaffected by colour of thoughts .Thanx again for the analysis.
मेरी आवाज़ तो वहां तक नहीं पहुचेगी लेकिन आप माध्यम बन जाए और अडवानी जी से कोई कहे भाजपा नेताओ का जमा धन तो वापिस मंगवा ही ले .
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