Friday, October 16, 2009

आलू कथा वा कृषि विज्ञान का प्रेक्टिकल

आज आलू पर बहुत प्यार आ रहा है. धनतेरस , नरक चतुर्दशी, दीपावली और भैया दूज के शुभ अवसर पर आलू की बात करना कुछ अशुभ तो नहीं है लेकिन थोड़ा अजीब और अजूबा जरूर हो सकता है , पर क्या किया जाय ? यत्र - तत्र - सर्वत्र अगर कोई कोई चीज व्याप्त है तो वह आलू है ! आलू है !! आलू है !!!. 'जब तक सूरज चाँद रहेगा ' की तर्ज़ पर ' जब तक रहेगा समोसे में आलू' के कहन की रवायत भी खूब चल पड़ी है. कुछ बरस पहले इसी तरह की पंक्तियों वाला एक गाना भी सुनने को मिला था. आजकल बाजार में आग लगी है. हर चीज मँहगी बिक रही है. धनतेरस भी इस बार 'मद्दा' और फीका - सा रहा फिर भी आलू जी महाराज की दुकान खूब चल रही है. क्यों न हो; अगर आम फलों का राजा है तो सब्जियों और तरकारियों का राजा शायद आलू ही होता होगा ! क्या बात है - आलू सब्ज ( हरा ) नही होता फिर भी सब्जी है ! इस समय नया पहाड़ी आलू २५ रुपये किलो के भाव से बिक रहा और पुराना कोल्ड स्टोर वाला २० रुपये किलो के भाव फिर भी उसकी खपत में कुछ खास कमी नहीं आई है क्योंकि आम आदमी आलू नहीं खाएगा तो और क्या खाएगा ? आँकड़ों की बात करें तो भारत आलू के उत्पादन में विश्व तीसरे स्थान पर है. आलू भक्षण के आँकड़े मुझे ज्ञात नहीं लेकिन उम्मीद है इस मामले में अपन सबसे ऊपर ही होंगे !

आज आलू पर बहुत प्यार आ रहा है. आना भी चाहिये.इसकी महिमा का बखान करने का मन तो कर रहा है लेकिन धनतेरस , नरक चतुर्दशी, दीपावली और भैया दूज के शुभ अवसर पर मिठाइयों , पकवानों और मेवों - मखानों की बात के बदले आलू की बात ? चीनी , तेल , वनस्पति घी का भाव हाथ नहीं रखने दे रहा है.मावा - खोया - पनीर में मिलावट के अनुप्रयुक्त रसायन विज्ञान की प्रयोगशालाओं से निकला उत्पाद हमारे पेट तक पहुँच रहा है.पटाखे खरीदने जाओ तो दाम सुनकर ऐसा लगता है कि जैसे किसी ने पूँछ में पटाखा बाँध दिया है. तब क्या किया जाय? आलू जी की शरण के अलावा और कहीं ठौर नहीं. यह सब जानकारियाँ तो पुरानी हो गईं कि 'गुलाब दिवस' .'कद्दू दिवस' , 'हस्त - प्रक्षालन दिवस' आदि - इत्यादि दिवसों की तरह 'आलू दिवस' भी मनाया जाता है. और तो और २००८ को अंतरराट्रीय स्तर पर 'आलू वर्ष' के रूप में मनाया गया तथा इस महान वानस्पतिक उपहार की शान में न केवल खूब कसीदे पढ़े गए बल्कि इस विपुला पृथ्वी के असंख्य मनुष्यों के उदर में जलने वाली आदिम आग भूख के विरुद्ध एक सहज उपलब्ध नैसर्गिक साधन के रूप में प्रतिष्ठित किया गया. इंसानी ज्ञान, जुगतऔर खेती - किसानी की अधुनातन खोजों के फलस्वरूप धरती की कोख से निकलने वाला आलू अब नाना रूप धर पैकेटों और पाउचों में कैद होकर हमारी जिह्वा पर स्वाद की तरह तैर रहा है. गैस से भरे गुब्बारों की की फूले ( न समाते ! ) पैकेटों और पाउचों को खोलते फाड़ते हुए तनिक सोचिएगा कि इस पैकेट - पाउचबंद आलू का क्या भाव है ? यह भाव दो अंकों में शायद ही हो !

आज आलू पर बहुत प्यार आ रहा है. कई - कई चीजें , तरह - तरह के प्रसंग याद आ रहे हैं. एक उम्र है जो आलू के सानिध्य में गुजर रही है - तमाम स्मृतियों और संदर्भों के साथ - साथ चलते हुए. कक्षा सात में दिया गया कृषि विज्ञान का प्रेक्टिकल इक्जाम याद आ रहा है. अपने पड़ोसी और वनस्पति विज्ञान के प्रोफेसर पी. के. चक्रोबोर्ती महोदय के किचेन गार्डेन में आलू की बुआई याद आ रही है. हिन्दी साहित्य की दुनिया में उपन्यास सम्राट कहे जाने वाले प्रेमचंद की मशहूर कहानी 'कफ़न' के पात्र माधव , घीसू और बुधिया याद आ रहे हैं.इस कहानी में एक और पात्र भी है - पड़ोसी के खेत से चोरी कर लाया गया और अलाव भुनता हुआ आलू. वैन गॊग का जगत्प्रसिद्ध चित्र ' द पोटैटो ईटर्स ' ( १८८५) भी इसी क्रम में स्मृति के कैनवस पर उभर रहा है जिसके आलूखोरों की उंगलियाँ अजब इशारे करती जान पड़्ती हैं. क्लास थर्ड बी में पढ़ने वाले अपने पुत्र अंचल सिद्धार्थ की साइंस और ई.वी .ई. की किताब का एक प्रश्न भी याद आ रहा है - 'पोटैटो इज रूट आर स्टेम ?' भारतीय आलू अनुसंधान केन्द्र , कुफरी ( शिमला ) की खूबसूरत पहाड़ियाँ याद आ रही हैं. आलू का इतिहास , भूगोल, पाकशास्त्र याद आ रहा है. पेरू और बोलीविया से लगभग आठ हजार साल पहले यात्रा आरंभ करते हुए आलू के भारत आगमन का काल्पनिक मानचित्र भी बनकर लगभग तैयार है. आलू में पाए जाने वाले तत्वों की तालिका भी तैयार - सी हो रही है. और 'सबार ऊपरे आलूर सत्य' की सत्य तरह असम , अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर और लगभग समूचे उत्त्तर - पूर्व भारत के भोजनालयों में 'भात' अर्थात भोजन में अतिविशिष्ट पकवान की तरह परोसा जाने वाला सरसों के तेल में तर बिना छिले आलू का 'भाजा' मुँह को द्रवित - सा कर रहा है तब भला आलू पर प्यार क्यों न आए ?

एक जरूरी अवांतर :

आज आलू पर बहुत प्यार आ रहा है. इधर आलू पर लिखी कुछ कवितायें भी पढ़ने को मिलीं. हास्य - व्यंग्य के नाम पर की जाने वाली तुकबंदी को अगर छोड़ दें जिनमें आलू के साथ लालू , भालू , चालू, टालू , शालू, कालू आदि शब्दों की तुक भिड़ाने के अलावा कुछ और नहीं होता है, तो उनके लिए , जो कविता को सचमुच कविता मानते हैं , प्रस्तुत है रामजी यादव की कविता 'आलू' का एक अंश - ( पूरी कविता पढ़ने के लिए नई कविता तक की यात्रा कर लें )

गरीब-गुरबा तो एक आलू पकाकर शोरबे में
काट देते हैं दिन

थके हुए श्रमिक आलू के चोखे में जरूरत से

ज्‍यादा मिर्च डालकर निकाल लेते हैं जरूरत भर रंगीनी

सिनेमा हाल के अंधेरे में
प्रेमी बनने के फेर में पड़ा यह छोकरा

अंकल चिप्‍स ठूंस देता है लड़की के मुंह में

और कान के पास सरगोशियों में इल्तिजा करता है.

मैं देखता हूं तुम विनम्र बना देते हो बड़े से बड़े तुर्रमों को

एक ही गोष्‍ठी में
सभी चाव से खा लेते हैं समोसा

और डकार लेते हुए चाय की तलब होती है

तुम मौजूद हो हर जगह
जैसे भाषा मौजूद रहती है

मगर गायब है तुम्‍हारा सम्‍मान
जैसे भावनाएं गायब हों
मनुष्‍यों के बीच.

फुट (मिड !) नोट : ( हिन्दी में बोले तो : पाद - मध्य टिप्पणी )

इस पोस्ट को लिखते समय मन था कि अपने कक्षा सात के कृषि विज्ञान का प्रेक्टिकल इक्जाम और प्रोफेसर पी. के. चक्रोबोर्ती की आलू बुआई की कथा बाँचूंगा लेकिन कहाँ से कहाँ बहक गया. अगर अभी तक आप बोर न हुए हुए हों तो दोनो में से कम से कम एक सत्यकथा तो आज सुनाई ही जा सकती हैं -

आलू कथा : कक्षा सात में दिया गया कृषि विज्ञान का प्रेक्टिकल इक्जाम ...

कृषि विज्ञान की प्रयोगात्मक परीक्षा के लिए प्रत्येक विद्याथी को छोटी - छोटी क्यारियाँ अलाट हुई थीं. एग्रीकल्चर माट्साहेब का आदेश था सभी लड़के अपनी - अपनी क्यारियों में आलू बोयेंगे और इसके लिए घर से एक रुपया लाना है और स्कूल के गेट पर वाली दुकान से आलू का बीज खरीदना है.इस होनहार विद्यार्थी ने अपने गुरुदेव की आज्ञा का आधा पालन किया और आधा खा गया. मतलब कि घर से एक रुपया तो जरूर लाया लेकिन क्या करता ! इंटरवेल में दुकान तक गया था तो आलू का बीज ही खरीदने बुरा हो ठेले पर सिंकतीं और बिकतीं उन आलू की टिक्कियों का जिन्होंने अपनी ओर खींच लिया. खैर,अपनी क्यारी में बिना बीज के ही आलू 'बो' देने का चत्कार कर दिया गया और बढ़िया मेंड़ें बना दी गईं.अब माट्साहेब अपना हाथ थोड़े गंदा करते और गोपीचन्द जासूस की तरह मेंड़ों की तलाशी लेते. वे आए और मौखिक परीक्षा ली-
'
किस चीज की बुआई कर रहे हो लड़के ?'
लड़के
ने कहा _ 'श्रीमान जी , आलू बोया गया है.'
गुरु
- 'लड़के , बताओ तो आलू में कौन - सा तत्व पाया जाता है ?'
लड़का
- 'जी, स्टार्च.'
गुरु
- 'बहुत अच्छे , बहुत अच्छे'.
और
एक होनहार विद्यार्थी , जिसके भीतर भारत का भविष्य छिपा हुआ था को, शाबासी आशीर्वाद से सिंचित कर गुरुदेव अगली क्यारी की ओर बढ़ लिए. कुछ दिन बीते . सबकी क्यारियों में हरे - हरे कोमल पत्तों वाले आलू के पौधे आधुनिक हिन्दी कविता में प्रयोगवाद के प्रणेता कविवर अज्ञेय के शब्दों में 'फोड़ धरा को रवि को तकते निर्भय' दिखाई देने लगे लेकिन अपनी क्यारी में कुछ हो तब उगे ! वहाँ तो प्रकृति के सुकुमार कवि पंत की तरह मैंने 'छुटपन छिपकर सिक्के ( भी नहीं ) बोए थे जो पैसों के पेड़ उगते. चोरी पकड़ी गई थी और अब सजा की बारी थी.यह स्कूल के अनुशासन का प्रश्न था कोई 'मेरा गाँव मेरा देश' फिल्म का सीन नहीं जिसमें चक्कू लेकर नाचने वाली लक्ष्मी छाया पूछती कि -'मार दिया जाय कि छोड़ दिया जाय , बोल तेरे साथ क्या सलूक किया जाय !' . माट्साहेब ने क्लास सेवेन्थ के मानीटर दर्शनलाल 'मोटू' से बेहाया / बेशरम / सदाबहार का मजबूत डंडा स्कूल के पिछवाड़े से मँगवाया और जो पौधे कभी क्यारी में उगने चाहिए थे वे इस होनहार विद्यार्थी , जिसके भीतर भारत का भविष्य छिपा हुआ था , की हथेलियों पर उगे. पता नहीं आलू के पौधे थे या किसी और वानस्पतिक उपहार के फिर भी जब भी कभी आलू देखता हूँ तो कक्षा सात में दिया गया कृषि विज्ञान का प्रेक्टिकल इक्जाम याद जाता है और क्यारी की जगह हथेलियों पर उगने वाले देह दिलदुखाऊ पौधे भी.

और अंत में सूचना की तरह ( किन्तु सूचना के शिल्प में नहीं ) :

*आलू पहेली - 'पोटैटो इज रूट आर स्टेम ?'
** माना कि आज आलू पर बहुत प्यार आ रहा है. आलू से जुड़े प्रसंग भी बहुत परेशान किए हुए हैं लेकिन धैर्य की भी कोई सीमा होती है! अत: सभी पाठकों को सूचित किया जाता है कि आलू की अगली किश्त के रूप में प्रोफेसर पी. के. चक्रोबोर्ती की आलू बुआई की कथा जल्द ही.अभी तो धनतेरस बीता है , नरक चतुर्दशी, दीपावली और भैया दूज बाकी हैं . ये त्योहार सबको शुभ हों ,ऐसी कामना है. शुभ दीपावली ! हैप्पी भाई दूज !
*** बोलो , आलू बाबा की जय !

7 comments:

Udan Tashtari said...

राम जी यादव जी की रचना का अंश पसंद आया.

सुख औ’ समृद्धि आपके अंगना झिलमिलाएँ,
दीपक अमन के चारों दिशाओं में जगमगाएँ
खुशियाँ आपके द्वार पर आकर खुशी मनाएँ..
दीपावली पर्व की आपको ढेरों मंगलकामनाएँ!

-समीर लाल ’समीर’

मुनीश ( munish ) said...

HAVE A LOOK AT FRESH PAHADI ALOO @ MAYKHAANA. VODKA IS ALSO PRODUCED FROM ALOO.

संगीता पुरी said...

सच है .. आज आलू आलू नहीं रह गया है !!
पल पल सुनहरे फूल खिले , कभी न हो कांटों का सामना !
जिंदगी आपकी खुशियों से भरी रहे , दीपावली पर हमारी यही शुभकामना !!

कामता प्रसाद said...

जय हो आलू बाबा की। आप अपने देशवासियों पर नाज करें। सबसे ज्‍यादा आलू भारतीय ही खाते हैं और आलू के साथ भात भी खाते हैं जबकि यूरोप में या तो आलू खाते हैं या फिर भात खाते हैं। ऐसा नहीं होता कि आलू की तरकारी के साथ भात खायें।

दीपावली शुभ हो।

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

आलू से जुड़ा ये प्रसंग काफी रोचक है.
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
आप सभी को दीपावली की शुभकामनाएं !!
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

- सुलभ सतरंगी

Puja Upadhyay said...

जय!!!
कमाल का आलू प्रसंग है :)

दीपा पाठक said...

आलू की शान में जो कशीदाकारी की गई है बहुत शानदार है। रामजी राय की कविता खासतौर पर अच्छी लगी। कृषि की प्रायोगिक परीक्षा में आपने जिस तरह से गुरूजनों को घुमैया दी सबको तभी पता चल जाना चाहिए था कि ये बच्चा बङा हो कर जरूर बङा बनेगा। उम्मीद है सभी कबाङीजनों ने दीवाली का भरपूर आनंद उठाया होगा। शुभम्