Saturday, November 14, 2009
ये हिमालयी कचरागाहें
अभी हाल ही में मोटर साइकिल भ्रमण करते हुए यमुनोत्री जाना हुआ था । कई अच्छे और ख़राब अनुभव रहे . अच्छे -अच्छे लिख चुका बैठ के मयखाने में और ख़राब ले के आ पसरा हूँ कबाड़ खाने में , इस उम्मीद में की कुछ सहानुभूति ही मिल-मिला जाए यार लोगों की ! फ़िर एक वरिष्ठ ब्लॉग-धर्मी भी इन दिनों बहुत कुछ लिख रहे हैं गंगा-घाट की सफाई और पिलाट्टिक के प्रबंधन के बारे में । उन्हें भी कहना चाहता हूँ के गंगा हो या जमना सब ऊपर से बहती हैं महाराज और ऊपर से ही पिलाट्टिक मय कर दी जाती हैं सो ये साफ़-सफाई अधूरी है । बहरहाल पैदल यात्रा मार्ग में प्लास्टिक के ऐसे-ऐसे कब्रगाह नज़र आए कि साँस अटकने को हो गयीं । अब पहले के मुकाबले चढाई का रास्ता पक्का ज़रूर कर दिया गया है और जगह-जगह डस्टबिन भी टांग दिए गए हैं मगर बावजूद इसके जो दिखा वो आप भी देख लें --
अगर आप धार्मिक हैं तो जान लीजिये कि शनि और यमराज की बहिन यमुना को गंदा करने का हश्र क्या होगा और अगर नास्तिक हैं तो भी आपको समझाना क्या , पर्यावरण की रक्षा का महत्व सभी के लिए है भाई और आइये मिल कर तै करें कि इस तरह नदियों को गंदा करने वालों का क्या इलाज होना चाहिए ।
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12 comments:
बहुत सुन्दर विषय उठाया आपने ! आज कमोवेश हर पहाडी प्रय्ताक्स्थल की यही स्थिति है क्या उत्तराखंड क्या हिमाचल ! लोग पता नहीं कब जागृत होंगे ?
अजीब बात है न धार्मिक ओर अधार्मिक दोनों इसका बेजा इस्तेमाल करते है .केवल हिन्दुस्तान ही ऐसा देश है जहाँ के पर्यटन वाले राज्य भी गंदगी ओर मानव के लालच का बेजोड़ नमूना है ...आगरा को देख लीजिये
शर्मनाक स्थिति !
जन जागृति से ही निदान संभव है
Not even a single comment, no concern whatsoever ....aaakthoo !
munishji dharmik aur adharmik kya sabhi ki aadaten ek si hai.jab tak safai ke liye kade dand pravadhan nahi honge koi nahi sudhrne wala.achchha lagata hai ki aap jaise kuchh log hain jinhe aisi cheeje dikhati hai aur aap un par udwelit hote hai,par sirf isase kuchh nahi hoga hame bolana bhi shuru karna hoga,nahi to hamare bachchon ka kya hoga.is samvedansheel yatra ke liye badhayee.
मुनीश भाई, आप थूक रहे थे तो मैं जरा बगल हटकर खडा हो गया था कि कहीं मेरे ऊपर ही..........वैसे इस तरह थूकना भी जुर्म है लेकिन........ यह जुर्म करने का मेरा भी मन हो रहा है:)
थूको पर देखो प्रदूषण न फ़ैले :) हमारे देश में न कोई कानून है न उसके पालन करने वाले। पालिथीन के दुरुपयोग से मुम्बई के ड्रेन चोक हो रहे हैं पर ट्रेन से भी आप देख सकते हैं कि कितने पोलिथीन थैले नाले में अटके रहते हैं!!!! अब टूरिस्ट जिम्मेदार नहीं है कचरा फैला रहे हैं तो निश्चय उनके मुख पर आखथू करना चाहिए॥
I thank you Mr. Godiyal, Dr.Anurag,Asheesh, Dr. Mahesh,Kavita,Nishachar and C.M.Pershaad saheb for sharing my concern . I strongly feel that Blog can help us in making people more aware about the environmental degradation.
मुनीश भाई!बधाई आपको आपने बहुत सही विषय चुना है।पिल्लाटिक से न केवल पहाड़ बल्कि मैदानों का भी बुरा हाल है।इससे बचने और पिंड छुड़ाने की बार-बार घोषणायएं होती है मगर वो वैसी है जैसी सिगरेट और तम्बाखू के पैकेट पर वार्निंग।पिल्लाटिक से चिंता जतायेंगे और उसके लिये गार्बेज़ टैंक भी रख देंगे मगर ये नही कि उस पर प्रतिंबध ही लगा दें।यंहा भी जब हमारा दोस्त सुनील सोनी महापौर बना तो इस बात पर आपके और हमारे जैसे लोगों की बात को उसने सुना भी और पालिथीन की थैलियों पर प्रतिबंध लगाने की कोशिश की और बाकायदा घोषणा तक़ कर डाली उसके बाद जैसे आपकी पोस्ट पर आपने आकथू किया वैसा ही हम सब को करना पड़ा और जैसे यंहा गिनती के बिलागर भाई आये है वैसे ही हम लोग भी गिनती के रह गये।जैसे इस घोर अनडेमोक्रेटिक देश मे 55 प्रतिशत वोट करने वालों मे से ज्यादा बटोरने वाले जीत जाते हैं और उनसे कंही ज्यादा 45 प्रतिशत उस प्रणाली को नकारने वाले हार जाते है,हम लोग हार गये और सड़ेले डेमोक्रेटिक स्ट्रकचर मे बहुमत जीत गया और पिल्लाटिक आज भी जगह-जगह शान से पसरा हुआ,आप और हम जैसे लोगो को मुंह चिढाता नज़र आ जाता है।खैर कोई बात नही आज नही तो कल जीतेंगे आप ही फ़िर चाहे कोई आस्तिक हो या नास्तिक,सब आपके पीछे आयेंगे।मैं सलाम करता हूं आपके जज़्बे को।
अनिल भाई आपके कमेन्ट ने मुझे आगे भी ऐसी फोटो चेंपने के लिए प्रेरित कर डाला है
और अब मैं ब्लॉगजगत के नक्कारखाने में पिलाट्टिक की तूती बजाता रहूंगा .
हर सुंदर चीज को कचराघर बना डाला है हमने। इंसान के हाथ में आते ही उसका बेड़ा गर्क हो जाता है। सही लिखा है आपने।
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