"... हेमिंग्वे का सारा काम यह दिखलाता है कि उसकी आत्मा चमकदार तो थी मगर उसका जीवन बहुत संक्षिप्त रहा. यह बात समझ में आती भी है. उसके भीतर का तनाव और लेखन की वैसी मज़बूत तकनीक - इन दोनों को उपन्यास की विशाल और जोखिमभरी ज़मीन पर लम्बे समय तक बनाए नहीं रखा जा सकता था. ऐसा उसका स्वभाव था और उसकी गलती यह थी कि उसने अपनी ही आलीशान हदों को पार करने का प्रयास किया. और यह इसी वजह से है कि तमाम सतही चीज़ें किसी भी और लेखक से कहीं ज़्यादा उसके लेखन में देखी जाती हैं. इसके बरअक्स उसकी कहानियों के साथ सबसे अच्छी बात यह है कि उन्हें पढ़कर लगता है कि कहीं किसी चीज़ की कमी है और यह चीज़ उन्हें खूबसूरत और रहस्यमय बनाती है. हमारे समय के एक और महान लेखक बोर्हेस के साथ भी यही बात है पर उसे इस बात का भान रहता है कि अपनी सीमाओं के पार न जाया जाए.
फ़्रान्सिस मैकोम्बर द्वारा शेर पर चलाई गई इकलौती गोली शिकार के नियमों के बारे में तो बहुत कुछ बताती ही है, लेखन के विज्ञान का सार भी उसमें निहित है. अपनी एक कहानी में हैमिंग्वे ने लिखा था कि लीरिया का एक सांड एक बुलफ़ाइटर के सीने से रगड़ खा कर लौटता हुआ "कोने पर मुड़ रही किसी बिल्ली" जैसा लगा. पूरे सम्मान के साथ मैं कहता हूं कि इस तरह का ऑब्ज़र्वेशन उन इन्स्पायर्ड मूर्खताओं से भरे टुकड़ों में गिना जा सकता है जो सिर्फ़ शानदार लेखकों के यहां पाये जाते हैं. हेमिंग्वे का सारा काम ऐसे ही सादा और चौंधिया देने वाली खोजों से भरा पड़ा है जो दर्शाते हैं किस बिन्दु पर उसने अपने गद्य की परिभाषा गढ़ी.
निस्संदेह अपनी तकनीक को लेकर इतना सचेत रहना ही इकलौता कारण है कि हेमिंग्वे को अपने उपन्यासों नहीं बल्कि कहानियों की वजह से महान माना जाएगा. ... व्यक्तिगत रूप से मुझे उसकी एक कम चर्चित छोटी कहानी 'कैट इन द रेन' सबसे महत्वपूर्ण लगती है. ..."
'गाब्रीएल गार्सीया मार्केज़ मीट्स अरनेस्ट हेमिंग्वे' (द न्यू यॉर्क टाइम्स, २६ जुलाई, १९८१) में गाब्रीएल गार्सीया मार्केज़
1 comment:
शायद मेरे लिये यह इतना सहज भी नहीं होगा कि कहानियों और उपन्यास के बारे में गाबो से सहमति या असहमति दर्ज कर सकूं..
हां उस्तादों की बात गौर से सुननी चाहिये.अशोक भाई! दोनों पत्रकार थे.गाबो अपनी भाषा घटनाओं से बुनते हैं और हैमिंग्वे भाषा से घटना को गढता है
बहुत सुन्दर पोस्ट...
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