वरिष्ठ कवि मनमोहन अक्टूबर १९५५ को मथुरा में पैदा हुए थे. फ़िलहाल रोहतक में पढ़ाते हैं. २००५ के शमशेर सम्मान से नवाज़े जा चुके मनमोहन के संग्रह ’ज़िल्लत की रोटी’ के ब्लर्ब में ख्यात कवि असद ज़ैदी लिखते हैं: " मनमोहन की कविता में एक गोपनीय आंसू और एक कठिन निष्कर्ष है. इन दो चीज़ों को समझना आज अपने समय में कविता और समाज के, राजनीति और विचार के, अन्ततः रचना और आलोचकों के रिश्ते को समझना है."
इसी संग्रह से पढ़िये दो बिल्कुल अलग-अलग तरह की कविताएं:
पग्गड़ सिंह का गाना
शील्ड तो ये है हमारी क्योंकि हम हैं फ़ील्ड के
फ़ील्ड में तू है कहां जो तुझको दे दें शील्ड ये
शील्ड हमको चाहिये और फ़ील्ड हमको चाहिये
फ़ील्ड में जो ’यील्ड’ है वि यील्ड हमको चाहिये
सर पै पग्गड़ चाहिये और एक फ़ोटू चाहिये
बीच का पन्ना समझ ले हमको डेली चाहिये
कुछ ये किनारा चाहिये, कुछ वो किनारा चाहिये
ग़रज़ मोटी बात ये अख़बार सारा चाहिये
चौंतरा छिड़का हुआ हो, टहलुए दस बीस हों
इक दुनाली, एक हुक्का. एक मूढ़ा चाहिये
आना जाना हाक़िमों, साथ मुस्टंडा रहे
जूतियां चाटें मुसाहिब, दुनिया चाहे जो कहे
कौन है तू, किसका पोता, किस गली का है बशर
क्या है तेरी ज़ात जो तुझको भी टाइम चाहिये.
इच्छा
एक ऐसी स्वस्थ सुबह मैं जागूं
जब सब कुछ याद रह जाय
और बहुत कुछ भूल जाय
जो फ़ालतू है
(जल्द ही मनमोहन की कुछ अन्य कविताओं से आपका परिचय करवाता हूं. धीरेश सैनी के ब्लॉग एक ज़िद्दी धुन पर इनकी कई कविताएं पढ़ी जा सकती हैं.)
13 comments:
सैनी साहब ने तो मनमोहन की बहुत सी कविताएं पढ़वायी हैं। साथ ही शुभा की भी। यहां पर भी मनमोहन को देख अच्छा लगा।
जावेद अख्तर का लिखा,"yes boss" फ़िल्म का गाना याद आ गवा-
जो बि चाउ ,
उ मै पाउ....
जन्दगी मे जीत जाउ....
बस इत्ता सा खाब है /
शील्ड ये है क्योकि सोनिया फ़ील्ड के हैं हम
फ़ील्ड में गर तू है फिर है शील्ड ये हमारी
दो लाइअन मेरी और से पग्गड़ सिह के लिए
पग्गड़ सिह का गाना तो गजब का रहा हा हा
शील्ड ये है क्योकि सोनिया फ़ील्ड के हैं हम
फ़ील्ड में गर तू है फिर है शील्ड ये हमारी
दो लाइअन मेरी और से पग्गड़ सिह के लिए
पग्गड़ सिह का गाना तो गजब का रहा हा हा
मनमोहन की कविता हमेशा शानदार होती है...व्यंग्य से भरी.
@ वर्षा - मनमोहन और शुभा की कविता अनुनाद पर भी पढ़ी जा सकती है.एक ज़िद्दी धुन जी ने ही वहाँ भी लगाई हैं.
क्या खूब!
Hmmm..Khoob !Jaan hai !
वाह! आनन्द आया..आभार.
Pahle laga ki ye haryana ke liye hai geetnuma kavita phir laga ye Paggad Singh to har kaheen hain. Thakre ko bhi padhni chahiye.
वाह
दोनों अंदाज़ खूब!
कुछ ये किनारा चाहिये, कुछ वो किनारा चाहिये
ग़रज़ मोटी बात ये अख़बार सारा चाहिये
वाह! वाह!!
बहुत खूब!
kaash aisa such main ho paata ki hum faltoo chize bhool pate, behtareen kavita blogar ka dhanyavad
अपनी फील्ड में बिना यील्ड के शील्ड मिले तो 'कसक होइबे करी'
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