
पूरी रात के लिए मचलता है
आधा समुद्र
आधे चांद को मिलती है पूरी रात
आधी पृथ्वी की पूरी रात
आधी पृथ्वी के हिस्से में आता है
पूरा सूर्य
आधे से अधिक
बहुत अधिक मेरी दुनिया के करोड़ों-करोड़ लोग
आधे वस्त्रों से ढांकते हुए पूरा तन
आधी चादर में फैलाते हुए पूरे पांव
आधे भोजन से खींचते पूरी ताकत
आधी इच्छा से जीते पूरा जीवन
आधे इलाज की देते पूरी फीस
पूरी मृत्यु
पाते आधी उम्र में.
आधी उम्र, बची आधी उम्र नहीं
बीती आधी उम्र का बचा पूरा भोजन
पूरा स्वाद
पूरी दवा
पूरी नींद
पूरा चैन
पूरा जीवन
पूरे जीवन का पूरा हिसाब हमें चाहिए
हम नहीं समुद्र, नहीं चांद, नहीं सूर्य
हम मनुष्य, हम -
आधे चौथाई या एक बटा आठ
पूरे होने की इच्छा से भरे हम मनुष्य.
6 comments:
adbhut...
बहुत ख़ूब अशोक भाई .... शुक्रिया.
AB IS UMER ME SAB KUCH PURA HO TO HI SWAST KE LIYE ACHHA HE
kamaal !!!
:)
नरेश जी को सुनना और पढ़ना हमेशा ही सुख देता है… साथ में उनकी आवाज़ भी लगा देते तो मज़ा दूना हो जाता …
बहुत उम्दा बात है. मैं सोचता हूँ जन के करीब होकर उसकी बात लिखना-बोलना, असली कला यही है.
Post a Comment