* जन्मशती पर फ़ैज अहमद फ़ैज़ को याद करते हुए उनकी कविता के साए में बड़ी हुई पीढ़ी तथा देश - दुनिया के प्रति संवेदनशीलता व समझदारी हासिल करने वालों की तरफ से स्मरण :
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आए कुछ अब्र कुछ शराब आए ।
उसके बाद आए जो अज़ाब आए।
बाम-ए-मीना से महताब उतरे
दस्त-ए-साकी में आफ़ताब आए।
हर रग-ए-ख़ूँ में फिर चरागाँ हो
सामने फिर वो बेनक़ाब आए।
कर रहा था ग़मे-जहाँ का हिसाब
आज तुम याद बेहिसाब आए।
ना गई तेरे ग़म की सरदारी
दिल में यूं रोज इनकिलाब आए।
इस तरह अपनी खामोशी गूँजी
गोया हर सिम्त से जवाब आए।
‘फ़ैज़’ थी राह सर-बसर मंज़िल
हम जहाँ पहुँचे क़ामयाब आए।
9 comments:
बहुत सुन्दर !
बहुत खूब...।
फ़ैज़ की शायरी का और आनंद लेना है तो यहाँ पिटारा खुला है। और भी बहुत कुछ है।
http://www.hindisamay.com
shukria !
कर रहा था ग़मे-जहाँ का हिसाब
आज तुम याद बेहिसाब आए।
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कैसे नहीं याद आयेगा फैज!
'रग़-ए-ख़ूँ में चरागाँ!'- फैज़ ही ऐसा प्रयोग कर सकते थे बाबा!
'रग़-ए-ख़ूँ में चरागाँ!'- फैज़ ही ऐसा प्रयोग कर सकते थे बाबा!
बेहतरीन।
vaya.....mehandi hasan sun raha tha....
बहुत खूब...।
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