Friday, February 25, 2011
जाना अंकल पई का
कल अनंत पई (१७ सितम्बर १९२९-२४ फरवरी २०११) का देहांत हो गया. अमर चित्र कथा जैसी अमर श्रंखला के जनक अंकल पई ने १९६७ में इन महान कृतियों की रचना शुरू की थी. मुझे यकीन है आप में से अधिकाँश के जीवन में अमर चित्र कथा से आपका साक्षात्कार एकाधिक बार अवश्य हुआ होगा. अमर चित्र कथा की हर साल तीस लाख से ज्यादा प्रतियां बिका करती हैं और एक अनुमान के मुताबिक़ अब तक इनकी बिक्री का आंकड़ा दस करोड़ से ऊपर जा चुका है. अमर चित्र कथा की शुरुआत का किस्सा बड़ा दिलचस्प है. फरवरी १९६७ में दूरदर्शन पर एक क्विज़ का प्रसारण किया गया. अनंत पई ने भी वह शो देखा. वे यह देख कर हैरान रह गए की प्रतिभागियों ने ग्रीक देवी-देवताओं से सम्बंधित सारे सवालों के जवाब तो सारे सही दिए पर भारतीय मिथकों की उनकी जानकारी बहुत कम थी. एक प्रतिभागी तो यह तक नहीं बता सका कि राम की माता का नाम क्या था.
सिर्फ दो साल की आयु में अनाथ हो गए अनंत ने विज्ञान की पढाई की. रसायन विज्ञान, भौतिकी और रासायनिक तकनीकी में स्नातक की दोहरी डिग्री धारक अनंत ने तो कुछ और ही करना था.
व्यक्तिगत रूप से मेरे जीवन में अनंत पई बहुत बड़ी जगह रखते हैं. अमर चित्र कथा की मेरी बचपन में जमा की गयी प्रतियां आज भी बाकायदा बाइंड करा के सुरक्षित धरी हुई हैं और मेरे परिजनों-मित्रों के बच्चों की कई पीढ़ियों तक पहुँचती रही हैं.
अमर चित्र कथा का कच-देवयानी वाला अंक मेरा सर्वप्रिय रहा है. राक्षस बार बार कच का वध करते जाते हैं और शुक्राचार्य बार बार उसकी राख को गटक कर अपने पेट से बार-बार उसे पुनर्जन्म देते जाते हैं.
इस बाबत कहने को बहुत कुछ है पर अभी समयाभाव है. फिर कभी. अंकल पई को कबाड़ख़ाने की हार्दिक श्रद्धांजलि.
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
6 comments:
बचपन से ही अमर चित्र कथा का चस्का था, अलबत्ता हिन्दी में... मैंने बचपन में बच्चों की इतनी किताबें पढी हैं, इसलिए दिमाग में अनंत पई सुनते ही लगा कि इनसे तो मैं परिचित हूँ !! और क्या कहूं, बस हिन्दुस्तान के बच्चों के बस्तों और दिलों पर जो बोझ लदा रहता है, उसके कारण वे बड़ी मुश्किल से अपनी जड़ें, अपने मिथक, अपने लोक-संस्कृति के विशाल संसार को जान पाते हैं, इसलिए आज पई अंकल जैसे लोगों की जरूरत और अहमियत बढ़ती जा रही है.....
श्रद्धांजलि.अंकल पई को.मेरा पसंदीदा अंक संत ज्ञानेश्वर का है.और इस कथा की मार्मिकता ने मुझे कई अन्य संतों की चित्र कथाओं को पढ़ने की और खींचा था पर वो वाली बात नहीं मिली मुझे किसी में.
बचपन में पढ़कर न जाने कितना सीखा।
सुपन्दी वाली tinkle जिन्कि है , वो quiz लेने आये है सुन कर हम सब १९८६-८७ मे इक्कटॆ हो गये,उदयपुर मे /
इनाम मे tinkle बटी थी /
बहुत ही गुरु-व्यक्तित्व के स्वामी थे पै साब /
------------------------------------------------
अमर्चित्र-कथा ने पाटःय़-पुस्तको से ज्यादा भुमिका निभाई,ग्यान्वर्धन मे/
राणा राज सिंह के बारे मुझे अमर चित्र कथा से ही पता च्ला था.
राणा राज सिंह के बारे मुझे अमर चित्र कथा से ही पता च्ला था.
Post a Comment