Monday, March 14, 2011

मेरे साथ मयाड़ घाटी चलेंगे ? -- 8

काफी देर तक हरकत में नही होने के कारण जिस्म फिर से ठण्डा रहा है.
उस्ताद बीर सिंह ने सलाह दी है कि आधे घण्टे मे हम कीर्तिंग़ पहुँच सकते हैं. वहाँ कुछ न कुछ खाने को मिल जाएगा . हमारे पास यह सलाह मानने के सिवा और विकल्प भी नहीं है.
हम चलने ही लगे हैं कि इंजन की आवाज़ सुनाई दी है. हम लोग कतार मे खड़े होगए. गाड़ी आई और हमारे लाख हाथ जोड़ने के बावजूद गुर्राती हुई निकल गई है . हम पर ढेर कीचड़ उछालती और उबकाई पैदा करने वाला धुँए का काला गुबार छोड़ती हुई.
चौहान जी की हालत पतली होने लगी है. उनका चेहरा देख कर लगता है अभी सरेंडर कर जाएंगे. धीरे धीरे हम आगे बढ़ने लगे हैं . मुझे डर था कि यह आदमी कहीं कोलेप्स न कर जाए. धूप तेज़ हो रही है और हवा का नामो निशान नहीं.

ख्रूटी नाला पार करते करते गला सूखने लग पड़ा है. एक जगह पॉपलर के बड़े से पेड़ के पास ज़मीन सीली हो रही है. देखा तो वहाँ पानी चू रहा है.


लेकिन इतना कम कि अंजुरी भर कर पिया भी न जाए. वहाँ कुछ घास के हरे तिनके उग रहे हैं और चिचिलोटि का एक नन्हा पीला फूल भी खिल रहा है. यह एक दुर्लभ फूल है. इस की उम्र बहुत कम होती है. बर्फ के बीच ही खिलता है और उस के पिघलने के साथ साथ झर भी जाता है. माँ कहा करतीं थीं कि यह फूल गाल पर रगड़ने से त्वचा नहीं झुलसती. मैने हाथ बढ़ा कर पीछे खींच लिए. इस उजाड़ में खिले अकेले फूल की हत्या करने चला था. एक बड़ा पाप करने से बच गया . बड़े स्नेह से मैंने उसे विदा कहा:

मेरे लौट कर आने तक यहीं रहना तुम
ओ नन्ही प्यारी चिचिलोटि
मैं रुकूँगा यहाँ तुम्हें खिलती हुई देखने को !

कीर्तिंग में कोई ढाबा खुला नहीं मिला. अलबत्ता एक बन्द दुकान के अहाते में कुछ युवक और अधेड़ छोलो और ताश खेल रहे हैं. हुक्के और चिलम चल रहे हैं . एकाध ने बीयर या व्हिस्की का जाम भी पकड़ रखा है हाथ में. नल पर खूब पानी पी कर हम आगे बढ़ गए हैं. मुझे कुछ भूख भी लगने लगी है. सहगल जी सहज और ‘कूल’ दिख रहे हैं. चौहान जी के चेहरे पर अथाह थकान और बेबसी नज़र आ रही है. अभी आधा रास्ता भी तय नही हुआ और दोपहर होने को आ रही है. थकावट, भूख, ढलता हुआ दिन और लिफ्ट न मिलने की खीज. ये सब मिल कर एक अवसाद पूर्ण अनुभूति उत्पन्न करते है. वाक़ई, यह एक सुखद यात्रा नहीं है. लेकिन मेरे भीतर एक कोना अभी भी पुलकित है , कि एक नई जगह को एक्स्प्लोर करूँगा .

(जारी)

4 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

कम हवा, व अधिक धूप, स्थिति कठिन हो जाती है।

abcd said...

munish bhai,
are you still in japan??
please revert back about your well-being.

regards,

abcd said...

अशोक जी,
आप्को मुनीश जी की खैरियत की खबर ज़रूर होगी ही ??!!
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Ashok Pande said...

@ abcd - मुनीश भाई ठीक हैं. मुझे भी बहुत चिंता हो रही थी. फेसबुक पर उनकी प्रोफाइल का लिंक यह रहा : http://www.facebook.com/profile.php?id=1502709999