Friday, April 22, 2011

जैसे चॉकलेट के लिए पानी - २


(पिछली किस्त से जारी)

कभी कभी वह अकारण भी रोया करती थी जैसे नाचा जब प्याज़ काटती थी. लेकिन चूंकि दोनों ही इसका कारण जानते थे, वे ज़रा भी ध्यान नहीं दिया करते थे. उसके लिए आंसू मनोरंजन का साधन हो गए थे. इसी कारण बचपन में तीता ख़ुशी और दुःख के आंसुओं में फ़र्क़ नहीं कर पाती थी. तीता का हंसना भी रोने जैसा होता था.

तीता के लिए जीवन के आनन्द भोजन के आनन्द से जुड़े हुए थे. बाहरी दुनिया को समझना ऐसे व्यक्ति के लिए आसान नहीं था जीवन के बारे में जिसका ज्ञान रसोईघर की जानकारी पर आधारित हो. रसोईघर के दरवाज़े के उस पार की दुनिया एक बहुत बड़ा विस्तार थी. वहीं दरवाज़े के इस तरफ़ - रसोई, पिछवाड़े का बरामदा और मसालों का बग़ीचा - सब कुछ तीता का था - उसका साम्राज्य था वह.

उसकी बहनें उस से बिल्कुल उलटी थीं - उन के लिए तीता की दुनिया अनजान ज़ोख़िमों से भरी हुई थी और वे उस से भयभीत रहती थीं. उनके ख़्याल से रसोईघर में खेलना मूर्खतापूर्ण और ख़तरनाक था. एक बार तीता ने उन्हें मना लिया कि वे रसोई में आकर उसके साथ लाल गर्म तवे पर पानी की बूंदों का आश्चर्यजनक नृत्य देखें.

अपने गीले हाथों से तवे पर पानी की बूंदें छिड़कती हुई तीता जब गा रही थी ताकि वे भी नाचें, रोसौरा हक्की-बक्की एक कोने में दुबकी खड़ी थी. वहीं गरत्रूदिस को यह बेहद आकर्षक लगा और उत्साहपूर्वक वह भी इस खेल में शामिल हो गई - ऐसा उत्साह वह हर ऐसी चीज़ में दिखाती थी जिसमें लय, गति और संगीत शामिल हों. फिर रोसौरा ने स्वयं को शामिल करने की कोशिश की - लेकिन उसने बमुश्किल अपने हाथ गीले किए थे और वह बहुत सावधानी से पानी छिड़क रही थी और उस तरह का प्रभाव पैदा नहीं हो पा रहा था. तीता ने उसके हाथ पकड़कर तवे के नज़दीक ले जाने चाहे, रोसौरा ने प्रतिवाद किया तो तंग आकर तीता ने उसके हाथ छोड़ दिए जो सीधा तवे से जा लगे. तीता की पिटाई हुई और आगे से बहनों के साथ उसकी दुनिया में खेलने की मनाही हो गई. फिर नाचा उसकी सहेली बन गई. भोजन से सम्बन्धित उन्होंने कई खेल बनाए. जैसे गांव के बाज़ार में उन्होंने एक आदमी को गुबारों से जानवरों की आकृतियां बनाते देखा तो सॉसेज से जानवर बनाने की बात उन्हें सूझी. उन्होंने हर किस्म के जानवर तो बनाए ही, कुछ की उन्होंने रचना भी की - हंस की गरदन कुत्ते की टांगों और घोड़े की पूंछ वाले जीव और ऐसे ही कई.

उसके लिए सॉसेज को बेहद धीमी आंच पर तला जाना चाहिए ताकि वे भूरे भी न हों और पूरी तरह पक भी जाएं. बाहर निकाल कर पहले से कांटे निकाली हुई सारडीन इसमें मिला दें. सारडीन की त्वचा पर अगर कोई काले धब्बे हों तो चाकू से उन्हें खुरच लिया जाना चाहिए. इसके बाद प्याज़, मिर्च और सारडीन के साथ पिसा हुआ ऑरेगानो इसमें मिला दें. रोल भरने से पहले इस मिश्रण को हल्का ठोस हो जाने के लिए छोड़ दें

रोल्स बनाने की प्रक्रिया का यह हिस्सा तीता को बेहद पसन्द था. रोल्स में भरे जाने से पहले इस भरवां मिश्रण की गन्ध उसे अच्छी लगती थी. गन्धों में बीता हुआ समय लौटा लाने की ताकत होती है - आवाज़ों और इन गन्धों के साथ, जिनका वर्तमान से कोई सम्बन्ध नहीं होता. गहरी सांस लेकर तीता को इस मिश्रण को सूंघना पसन्द था - पूर्वपरिचित गन्ध और धुंआं उसे उसकी स्मृति के संसार में पहुंचा देते.

यह याद करने की कोशिश करना व्यर्थ था कि पहली बार उसने इन रोल्स को कब सूंघा होगा. वह याद कर भी नहीं सकती थी. शायद यह उसके पैदा होने से पहले हुआ था. यह सारडीन और सॉसेज का विचित्र मिश्रण रहा होगा जिसके कारण उसने अपने दिव्य अस्तित्व के स्थान पर मामा एलेना के गर्भ में दे ला गार्ज़ा परिवार में उसकी बेटी बनने का फ़ैसला किया, ताकि वह इस परिवार के अलौकिक सॉसेज और स्वादिष्ट भोजन का आनन्द ले सके.

मामा एलेना के रैन्च पर सॉसेज बनाने का काम किसी अनुष्ठान जैसा होता था. पहले दिन वे लहसुन छीलने, मिर्चें साफ़ करने और मसाले पीसने का काम शुरू करते थे. घर की सारी औरतों को इसमें हिस्सा लेना होता था - मामा एलेना, उनकी बेटियां गरत्रूदिस, रोसौरा और तीता, खाना पकाने वाली नाचा और चेन्चा, घर की नौकरानी. दोपहर को वेडाइनिंग रूम की मेज़ के गिर्द इकठ्ठा होते और बातों बातों में समय जैसे उड़ता जाता जब तक कि अन्धेरा होने लगता. तब मामा एलेना कहतीं -

"आज के लिए इतना ही बहुत है."

कहते हैं अच्छे श्रोता के लिए एक शब्द ही काफ़ी होता है, सो यह सुनते ही वे झट से उठ कर अपने कामों में लग जातीं. पहले मेज़ साफ़ करनी होती थी उसके बाद हरेक को काम बांटे जाते - एक को मुर्गियां इकठ्ठा करना, दूसरी कॊ नाश्ते के लिए कुंए से पानी निकालना, तीसरी को चूल्हे के लिए लकड़ियां इकठ्ठा करना. उस दिन न कपड़ों पर इस्तरी होती थी, न कढ़ाई, न सिलाई. काम पूरा हो जाने के बाद वे अपने अपने कमरों में जाकर पढ़तीं, प्रार्थना करतीं और सो जातीं. एक दोपहर मामा एलेना द्वारा मेज़ छोड़ने की अनुमति देने से पहले तीता ने, जो तब पन्द्रह की थी, कांपती आवाज़ में बताया कि पेद्रो मार्क्विज़ उनके साथ बात करना चाहता है ...

एक लम्बी चुप्पी के बाद जिसके दरम्यान तीता को अपनी आत्मा सिकुड़ती सी लगी, मामा एलेना ने पूछा -

"और ये श्रीमान मेरे साथ क्या बात करना चाहते हैं?"

तीता का जवाब बमुश्किल ही सुना जा सकता था.

"मुझे पता नहीं."

मामा एलेना ने तीता पर एक निगाह डाली जिसमें तीता को लगा कि वर्षों से परिवार पर किए गए अत्याचार भरे हुए थे, और कहा -

"अगर वह तुम्हारा हाथ मांगना चाहता है तो उस से कहो भूल जाए. वह अपना और मेरा समय बरबाद करेगा. तुम्हें अच्छी तरह मालूम है परिवार की सबसे छोटी लड़की होने के नाते तुम्हें उस दिन तक मेरा ख्याल रखना होगा जब तक मैं मर नहीं जाती."

उसके बाद मामा एलेना हल्के से अपने पैरों पर खड़ी हुईं. चश्मा अपने एप्रन की जेब में रखा और अन्तिम आदेश के स्वर में कहा -

"आज के लिए इतना ही बहुत है."

(जारी)

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