अशोक भाई का बहुत शुक्रगुजार हूँ कि उन्होंने मुझे अपना कबाड़ यहाँ रखने की इज्जत बख्शी. फिलहाल रोक डाल्टन के कबाड़ में इस इजाफे को क़ुबूल फरमाएं...
(अनुवाद : मनोज पटेल)
कितना सुन्दर है कम्युनिस्ट होना
हालांकि यह बहुत सिरदर्द भी देता है.
आप देखते हैं कि साम्यवाद का सिरदर्द
ऐतिहासिक समझा जाता रहा है, यानी
यह दर्दनिवारक गोलियों से नहीं दूर होता
बल्कि दूर होता है यह
केवल पृथ्वी को स्वर्ग बना देने की उपलब्धि से.
मैं बताऊँ आपको, यह बम है, बम !
पूंजीवाद के अधीन जब हमारा सिर दुखता है
वे बस हमारे सिर को उतार लेते हैं.
क्रांतिकारी संघर्ष में, सिर एक विलंबित बम है.
सामाजिक ढाँचे में हम अपने सिरदर्द की ऎसी योजना बनाते हैं
जो उसे बहुत बिरला नहीं रहने देता, बल्कि इसका ठीक उल्टा
बाक़ी चीजों के साथ-साथ, साम्यवाद
सूरज जितनी बड़ी एस्प्रिन की एक टिकिया होगा.
10 comments:
आपको यहाँ देखकर अच्छा लगा, मनोज भाई |
बढ़िया कविता है ।
कितना सुन्दर है कम्युनिस्ट होना
हालांकि यह बहुत सिरदर्द भी देता है....
wakaii is sundarta ka anand sir dard men hi hai.
राक डाल्टन की इस अद्भुत कविता का सुन्दर अनुवाद किया आपने ! बधाई और धन्यवाद !
अन्दर की कथा।
वाकई कभी-कभी सिरदर्द ही देता है...
अच्छी रचना...
जबरदस्त कविताएं और शानदार अनुवाद। कबाड़खाना में स्वागत!!
उम्दा मनोज भाई. शुक्रिया.
बड़े अच्छे कबाड़ी आये हैं ये तो !
:-)
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