Wednesday, May 4, 2011

आपको डरना चाहिए ग़ुलाब से


राफ़ाल वोयात्चेक की असाधारण कविताओं से आपको मैंने इन दो पोस्ट्स के माध्यम से परिचित कराया था.

दुख ने मुझे भर दिया है साहस से और

मेरे सामने एक आदमी लाओ मैं उसकी महानता को पहचानूंगा

आज मुझे राफ़ाल की कुछ और कविताएं मिल गईं. उनमें से एक को तुरन्त अनूदित कर के यहां लगा रहा हूं. जिन सज्जनों को पिछली पोस्ट में जाने का समय न मिल सके उनके वास्ते राफ़ाल का परिचर दोबारा से -

राफ़ाल का जन्म १९४५ में पोलैंड के एक सम्मानित परिवार में हुआ था. ११ मई १९७१ को मात्र छब्बीस साल की आयु में आत्महत्या कर चुकने से पहले राफ़ाल ने तकरीबन दो सौ कविताएं लिखीं, जिन्हें चार संग्रहों की शक्ल में प्रकाशित किया गया. कुछ कविताएं उसने छ्द्म स्त्रीनाम से भी लिखीं.

उसकी पढ़ाई बहुत बाधित रही और ताज़िन्दगी वह अल्कोहोलिज़्म और डिप्रेशन का शिकार रहा. उसने कविता लिखना तब शुरू किया था जब पोलैंड के युवा कवियों को यह भान हो गया था कि उनका देश एक झूठे और भ्रष्ट राजनैतिक सिस्टम में फंस चुका है.

राफ़ाल की कविताएं तत्कालीन पोलैंड की राजनीति और सामाजिक परिस्थिति को एक सार्वभौमिक अस्तित्ववादी त्रासदी के स्तर पर देखती हैं. मोहभंग, व्यक्तिगत भ्रंश, और मृत्यु के प्रति ऑब्सेशन उसकी कविताओं की आत्मा में है.

पोलैंड के मिकोलो क़स्बे में, जहां वह जन्मा था - हाल ही में उसके नाम पर एक संग्रहालय का उद्घाटन किया गया है, बीसवीं सदी की महान पोलिश कविता में जीवन भर अभिशप्त रहे इस उल्लेखनीय युवा कवि को बहुत लाड़ के साथ याद किया जाता है


आपको डरना चाहिए ग़ुलाब से

राफ़ाल वोयात्चेक

आपको डरना चाहिए ग़ुलाब से; यह उस घाव का
मुंह होता है जो आपके भीतर रिसता रहता है लगातार

चूंकि मेरी जीभ, ओ निर्वसन, तुम्हें नहीं खोज सकती
मुझे बतलाओ कि तुम भयभीत हो, मैं यक़ीन कर लूंगा कि तुम्हारा अस्तित्व है.

कि तुम अस्तित्वमान हो, अपनी देह को लेकर सचेत.
देह एक झीना सा परदा होती है, एक कोमल सा झोंका

जिसे बदल सकता है खून सने खिड़की के शीशे में.
आग का एक तूफ़ान कब्ज़ा कर लेगा पड़ोसी ज़िले में,

हरेक नवजात की आंखों को जला डालेगा
जबकि गिरना शुरू कर देंगे अन्धी ग़मज़दा मांओं के बाल

तो मुझे बताओ, ताकि सिर्फ़ मेरे बाल तुम्हें सुन सकें
ताकि मेरी त्वचा पढ़ सके तुम्हारे होंठों को एक फुसफुसाहट की

तेज़ कांप के साथ, चाहे तुम अब भी रहते हो इस कीचभरे इन्सान के भीतर
मुझे बताओ, इसके पहले कि मैं इस से होकर बह जाऊं पूरा का पूरा.

1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

अनुभव की सांध्रता में पगी कविता।