Thursday, August 4, 2011

निज़ार क़ब्बानी की एक और प्रेम कविता


जब मैंने तुमसे कहा था


जब मैंने तुमसे कहा था
"मैं तुमसे प्यार करता हूं"
मैं जानता था
कि मैं एक कबीलाई कानून के ख़िलाफ़
तख़्तापलट का नेतृत्व कर रहा था,
कि मैं बजा रहा था बदनामी की घन्टियां.
मैं सत्ता हथियाना चाहता था
ताकि जंगलों में
पत्तियों की संख्या बढ़ा सकूं
मैं सागर को बनाना चाहता था और अधिक नीला
बच्चों को और अधिक निष्कपट.
मैं बर्बर युग का ख़ात्मा करना चाहता था
और क़त्ल करना आख़िरी ख़लीफ़ा का.
जब मैंने तुम्हें प्यार किया
मेरी मंशा यह थी
कि हरम के दरवाज़ों को तहस-नहस कर डालूं
स्त्रियों के स्तनों की रक्षा कर सकूं
पुरुषों के दांतों से:
ताकि उनके कुचाग्र
हवा में ख़ुश होकर नाच सकें.

जब मैंने तुमसे कहा था
"मैं तुमसे प्यार करता हूं"
मैं जानता था
आदिम लोग मेरा पीछा करेंगे
ज़हरीले भालों के साथ
धनुष-बाणों के साथ.
मेरी फ़ोटो चस्पां कर दी जाएगी हर दीवार पर
मेरी उंगलियों के निशान बांट दिए जाएंगे
तमाम पुलिस स्टेशनों में,
बड़ा ईनाम दिया जाएगा उसे
जो मेरा सिर पहुंचाएगा उन तलक
जिसे वे शहर के प्रवेशद्वार पर टांगेंगे
एक फ़िलिस्तीनी सन्तरे की तरह


जब तुम्हारा नाम लिखा था मैंने
ग़ुलाबों की कापियों में
सारे अनपढ़ों
सारे बीमार और नपुंसक पुरुषों ने
उठ खड़े होना था मेरे ख़िलाफ़
जब मैंने तय किया आख़िरी ख़लीफ़ा का क़त्ल करना
घोषणा करने को
प्यार के राज्य की स्थापना की
जिसकी मलिका का ताज तुम्हें पहनाया
मैं जानता था
सिर्फ़ चिड़ियां
गाएंगी मेरे साथ क्रान्ति के बारे में.

3 comments:

गणेश जोशी said...

bahut achhi kavita..

Girish Yadav said...

वाह क्या अंदाजे़बयां है।

aflaatoonbowles alias thespoiledgenius said...

its after a long time since i have surfed the net. Nice to find You active