Friday, August 5, 2011

कला वही हरी अनन्तता है - होर्हे लुई बोर्हेस


कविता की कला

-होर्हे लुई बोर्हेस


समय और पानी से बनी एक नदी को निहारना
और याद करना समय एक और ही नदी है.
जानना कि हम भटकते फिरते हैं एक नदी की तरह
और पानी की तरह अदृश्य हो जाते हैं हमारे चेहरे.

महसूस करना कि जागना एक दूसरा ही सपना है
कि सपना न देखने के सपने और मौत
जिसका भय हमें हड्डियों में महसूस होता है वह मौत है
जिसे हर रात हम एक सपना कहते हैं.

हर दिन और बरस में देखना एक प्रतीक
आदमी के सारे दिनों और उसके बरसों का,
और बरसों की नाराज़गी को तब्दील कर देना
एक संगीत में, एक ध्वनि और एक प्रतीक में.

मौत में देखना एक सपना, सूर्यास्त में
एक सुनहली उदासी, ऐसी होती है कविता
विनम्र और अमर, कविता,
लौटती हुई, भोर और सूर्यास्त की मानिन्द.

कभी-कभी शाम को एक चेहरा होता है
ज देखता है हमें एक आईने की गहराइयों से.
कला ने होना चाहिए उसी तरह का आईना
हम में से हरेक को उसका चेहरा दिखलाता हुआ.

कहते हैं, चमत्कारों से ऊबा हुआ यूलीसिस
प्रेमातिरेक में हरे और विनम्र इथाका को देख कर
रो पड़ा था. कला वही इथाका है
एक हरी अनन्तता, न कि चमत्कार.

अन्तहीन होती है कला बहती नदी जैसी
गुज़रती हुई, तो भी बनी हुई, उसी
अधीर हेराक्लिटस के लिए एक आईना, जो है तो वही
तो भी कोई दूसरा ही, बहती हुई नदी की तरह.

(यूलीसिस - यूलिसिस ओडीसियस नामक मिथकीय यूनानी सम्राट का दूसरा नाम था. महाकवि होमर के महाकाव्य ओडिसी का नायक यूलीसिस इथाका का राजा था, इथाका - यूनान के आयोनियाई समुद्र में अवस्थित एक सुन्दर द्वीप, हेराक्लिटस - सुकरात से पहले के एक यूनानी दार्शनिक जो ब्रह्माण्ड में बदलाव को सबसे केन्द्रीय तत्व मानते थे और उन्हें अपने इस कथन के लिए सबसे ज़्यादा जाना जाता है कि "आप एक ही नदी में दो बार नहीं उतर सकते")

1 comment:

S.N SHUKLA said...

बहुत सुन्दर प्रभावशाली प्रस्तुति,आभार