Saturday, February 11, 2012
तुमुल कोलाहल कलह में मैं ह्रदय की बात रे मन
जयशंकर प्रसाद जी की कालजयी रचना कामायनी के 'निर्वेद' सर्ग के इस गीत को संगीत दिया था जयदेव ने और इसे गाया था आशा भोंसले ने. यह रचना १९७१ में रिलीज़ हुए अल्बम "एन अनफॉरगेटेबल ट्रीट" में संकलित है. इस संग्रह से कुछेक और रचनाएँ जल्द ही-
तुमुल कोलाहल कलह में मैं ह्रदय की बात रे मन
विकल होकर नित्य चचंल, खोजती जब नींद के पल,
चेतना थक-सी रही तब, मैं मलय की बात रे मन
चिर-विषाद-विलीन मन की, इस व्यथा के तिमिर-वन की
मैं उषा-सी ज्योति-रेखा, कुसुम-विकसित प्रात रे मन
जहाँ मरु-ज्वाला धधकती, चातकी कन को तरसती,
उन्हीं जीवन-घाटियों की, मैं सरस बरसात रे मन
पवन की प्राचीर में रुक जला जीवन जी रहा झुक,
इस झुलसते विश्व-दिन की मैं कुसुम-श्रृतु-रात रे मन
चिर निराशा नीरधार से, प्रतिच्छायित अश्रु-सर में,
मधुप-मुखर मरंद-मुकुलित, मैं सजल जलजात रे मन
Labels:
आशा भोंसले,
कामायनी,
जयदेव,
जयशंकर प्रसाद
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
3 comments:
बहुत ही सुन्दर आनंद आ गया अशोक जी .
सुखद अचरज हुआ। अब जो भी सीडी वगैरह हो, कॉपी कराके भिजवा दीजिए। यहां सुनवाने के लिए तो शुक्रिया है ही।
बहुत ही सुन्दर. सुनवाने के लिए आभार.
घुघूतीबासूती
Post a Comment