Tuesday, February 7, 2012
हमारे चले जाने के बाद सिर्फ़ इसी जीवन को याद रखना
पीछे नहीं देखते निर्वासन
महमूद दरवेश
पीछे नहीं देखते निर्वासन, निर्वासन की
एक जगह छोड़ते हुए - क्योंकि आगे
आने को हैं और निर्वासन, वे परिचित हो चुके हैं
घुमावदार सड़क से, कुछ भी सामने नहीं
पीछे नहीं कुछ, न उत्तर न दक्षिण.
वे एक बाड़ से बग़ीचे में जाते हैं
घर के बरामदे
को छोड़ते पीछे छोड़ते जाते एक इच्छा हर कदम के साथ:
"हमारे चले जाने के बाद सिर्फ़ इसी जीवन को याद रखना."
अनुपस्थिति के सामानों से भरा एक कफ़न लादे
वे सुबह के मुलायम रेशम से दोपहर की धूल में यात्रा करते हैं:
एक पहचान पत्र और प्रेमी के लिए एक चिठ्ठी, जिसका पता नहीं मालूम:
"हमारे चले जाने के बाद सिर्फ़ इसी जीवन को याद रखना."
विजय की घायल मुद्रा के साथ वे यात्रा करते हैं
घर से सड़क तक, मिलने वालों से कहते हुए:
"हम अब भी जीवित हैं सो हमें हटा देना स्मृति से."
वे अपनी कहानी से उभरते हैं सांस लेने और धूप
तापने को, सोचते हैं ऊंचा उड़ने की ...
... और और ऊंचा. वे उठते हैं गिरते हैं. वे आते हैं और चले जाते हैं.
वे एक पुरातन सेरामिक टाइल से कूद जाते हैं एक सितारे में.
और वे वापस लौट आते हैं एक कहानी में ...
शुरुआत का कोई अन्य नहीं.
वे तन्द्रा से भाग आते हैं नींद के एक फ़रिश्ते में
ज़र्द और बहाए जा चुके रक्त के बारे में सोचने के कारण
लाल हो आई आंखों के साथ:
"हमारे चले जाने के बाद सिर्फ़ इसी जीवन को याद रखना."
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महमूद दरवेश
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5 comments:
बोहोत सई।
एक पहचान पत्र और प्रेमी के लिए एक चिठ्ठी, जिसका पता नहीं मालूम:
"हमारे चले जाने के बाद सिर्फ़ इसी जीवन को याद रखना."
bahut sundar...
palchhin-aditya.blogspot.in
घूम-घूमकर देखिए, अपना चर्चा मंच ।
लिंक आपका है यहीं, कोई नहीं प्रपंच।।
--
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज बुधवार के चर्चा मंच पर लगाई गई है!
महमूद दरवेश की लगभग हर पोस्ट बेहद महत्वपूर्ण लगती है। आपकी मार्फत पढ़ते-पढ़ते वे अपने लगने लगे हैं नाजिम हिकमत जैसे चुनिंदा कवियों की तरह।
bahut achcha.
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