Tuesday, February 28, 2012

हत्यारों को अब कितनी आसानी है!

कुमार अम्बुज के संग्रह 'अमीरी रेखा' से इन दिनों आप कुछ कवितायेँ पढ़ रहे हैं. आज उस संग्रह से एक और छोटी सी कविता.

आसानी

(आधुनिक कंसंट्रेशन कैम्प)


मैं बहुसंख्यकों के मोहल्ले में रहता हूँ
तुमने भी बना ली है अपनी अलग बस्ती

मिट्टी से अलग मिट्टी
पानी से अलग पानी है

हत्यारों को
अब कितनी आसानी है!

2 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

बेहतरीन, एक अध्याय के बराबर..

मोहन श्रोत्रिय said...

"हत्यारों को
अब कितनी आसानी है!"
मज़हबी अलगाव "हत्यारों" के काम को कितना आसान बना देता है, मात्र छह पंक्तियों में इसे ऐसे उकेर दिया गया है कि यह कविता नश्तर का काम करती दिखती है, और आंखों में उंगलियां डाल कर दिखाने का भी.