Friday, February 3, 2012

परीकथाएँ अब भी सुखान्त होती हैं


आज का दिन शिम्बोर्स्का को याद करने का था. कहना न होगा शिम्बोर्स्का की कविताएँ बीसवीं शताब्दी का वह बयान हैं जिसके बगैर उस सदी के इतिहास ने अधूरा रह जाना था. इस महान कवयित्री की आज के लिए आख़िरी कविता-

नाव की तरफ

-विस्वावा शिम्बोर्स्का

एक अनंत बारिश शुरू हुआ चाहती है
नाव की तरफ, और कहाँ जा सकते हैं आप,
इकलौती आवाज़ के लिए तुम्हारी कविताएँ,
व्यक्तिगत अतिशयोक्तियाँ,
अनावश्यक प्रतिभाएं,
ज़रूरत से ज्यादा जिज्ञासा
सीमित दुःख और भय,
चीज़ों को सभी छः तरफ से देखने की उत्सुकता.

फूल रही हैं नदियाँ और उन के किनारे फटने को तैयार
नाव की तरफ, तुम सारे चित्रों और अर्ध-रंगों,
तुम - तफसीलो, गहनो, सनको,
मूर्ख अपवादों,
विस्मृत संकेतों,
सलेटी रंग की असंख्य आभाओ
खेल के वास्ते खेल
और खुशी के आंसू

जहाँ तक निगाह पहुँचती है, सिर्फ पानी और धुंधले क्षितिज
नाव की तरफ, सुदूर भविष्य के लिए योजनाएं,
विभिन्नता में उल्लास,
बेहतर इंसान के लिए सराहना
एक या दो तक सीमित न कर दिए गए विकल्प,
घिस चुके नैतिक मानदंड,
इस बारे में दोबारा सोचे जाने का समय,
और यह यकीन
कि यह सारा किसी दिन कार आमद साबित होगा.

यह बच्चों की वजह से है
कि हम अब तक बने हुए हैं
परीकथाएँ अब भी सुखान्त होती हैं
वही एक आख़िरी अंत है जिस से फिलहाल भी काम चल जाएगा.
बारिश रुक जाएगी,
शांत हो जायेंगी लहरें,
छितर जायेंगे बादल
साफ़ आसमान में
और वे फिर से वही हो जायेंगे
जो बादलों ने होना होता है -
ऊंचा और हल्का,
धुप में सूख रही चीज़ों
के समान -
आनंद के टापू,
भेडें,
बन्द्गोभियाँ,
बच्चों की लँगोटियाँ.

1 comment:

शायदा said...

शुक्रिया ।