अख्तरी बाई यानी
बेगम अख्तर किसी परिचय की मोहताज नहीं हैं. मलिका-ए-गज़ल के नाम से विख्यात बेगम
अख्तर ने पुराने उस्तादों को जितना बखूबी गाया उतना ही अपने समकालीनों को. ग़ालिब
और मीर जैसे उस्ताद शायर की रचनाओं को उन्होंने स्वर दिया तो शकील बदायूनी और
सुदर्शन फाकिर को भी.
गज़लों के चयन में उनकी सूझबूझ के अलावा शब्दों के विशिष्ट उच्चारण ने उन्हें सबसे अलग पहचान थी.
आज उनकी गाई एक कम विख्यात रचना पेश है. शायर हैं तस्कीन कुरैशी.
गज़लों के चयन में उनकी सूझबूझ के अलावा शब्दों के विशिष्ट उच्चारण ने उन्हें सबसे अलग पहचान थी.
आज उनकी गाई एक कम विख्यात रचना पेश है. शायर हैं तस्कीन कुरैशी.
अब तो यही हैं
दिल की दुआएं
भूलने
वाले भूल ही जाएँ
वजह-ए-सितम
कुछ हो तो बतायें
एक
मोहब्बत लाख ख़तायें
दर्द-ए-मोहब्बत
दिल में छुपाया
आँख
के आँसू कैसे छुपायें
होश
और उनकी दीद का दावा
देखने
वाले होश में आयें
दिल
की तबाही भूले नहीं हम
देते
हैं अब तक उनको दुआएं
रंग-ए-ज़माना
देखने वाले
उनकी
नज़र भी देखते जायें
शग़ल-ए-मोहब्बत
अब है ये 'तस्कीन'
शेर कहें और जी बहलायें
4 comments:
नहीं सुनी थी अब तक -बहुत आभार!
जी रए यार अशोक. ६ मिनट और उन्तीस सेकेण्ड तक तुमने मुझे जिंदगी का वह टुकड़ा दे दिया, जिसकी मुझे न जाने कब से प्रतीक्षा थी. इसके बदले मैं तुम्हें सिर्फ अपनी उम्र दे सकता हूँ.
जी रए यार अशोक. ६ मिनट और उन्तीस सेकेण्ड तक तुमने मुझे जिंदगी का वह टुकड़ा दे दिया, जिसकी मुझे न जाने कब से प्रतीक्षा थी. इसके बदले मैं तुम्हें सिर्फ अपनी उम्र दे सकता हूँ.
बटरोही जी ने इत्ती बड़ी बात कह दी है, अब कहने को क्या बचता है? रात में बेगम अख्तर को आपके बहाने सुन लिया। शुक्रिया।
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