बरसों पुरानी किसी एक याद को ताज़ा करते हुए गुलाम अली की गाई इस गज़ल को सुना गया आज.
ये भी याद आया कि गुलाम अली की बनाई इसी धुन पर दिलराज कौर ने भी मोहसिन नकवी की इस गज़ल को गाया है.
आप के साथ बाँट रहा हूँ.
इतनी मुद्दत बाद मिले हो
किन सोचों में गुम रहते हो
तेज हवा ने मुझ से पूछा
रेत पे क्या लिखते रहते हो
हमसे न पूछो हिज्र के किस्से
अपनी कहो अब तुम कैसे हो
कौन सी बात है तुम है ऐसी
इतने अच्छे क्यों लगते हो
1 comment:
ग़ुलाम अली चूँकि ठुमरी परम्परा के बेजोड़ खिलाड़ी हैं सो वे एक ही मिसरे को कितनी कितनी बार कितनी तरह से बरतते जाते हैं.....बेजोड़....
Post a Comment