Tuesday, May 8, 2012

इतने अच्छे क्यों लगते हो


बरसों पुरानी किसी एक याद को ताज़ा करते हुए गुलाम अली की गाई इस गज़ल को सुना गया आज.

 


ये भी याद आया कि गुलाम अली की बनाई इसी धुन पर दिलराज कौर ने भी मोहसिन नकवी की इस गज़ल को गाया है.

 

आप के साथ बाँट रहा हूँ.

इतनी मुद्दत बाद मिले हो
किन सोचों में गुम रहते हो


तेज हवा ने मुझ से पूछा
रेत पे क्या लिखते रहते हो


हमसे न पूछो हिज्र के किस्से
अपनी कहो अब तुम कैसे हो


कौन सी बात है तुम है ऐसी
इतने अच्छे क्यों लगते हो




1 comment:

sanjay patel said...

ग़ुलाम अली चूँकि ठुमरी परम्परा के बेजोड़ खिलाड़ी हैं सो वे एक ही मिसरे को कितनी कितनी बार कितनी तरह से बरतते जाते हैं.....बेजोड़....