हिन्दी के वरिष्ठ कवि श्री भगवत रावत का लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया. कबाड़खाने की उन्हें श्रद्धांजलि. उनकी ही एक कविता प्रस्तुत है -
जब कहीं चोट लगती है
जब कहीं चोट लगती है, मरहम की तरह
दूर छूट गए पुराने दोस्त याद आते हैं.
पुराने दोस्त वे होते हैं जो रहे आते हैं, वहीं के वहीं
सिर्फ़ हम उन्हें छोड़कर निकल आते हैं उनसे बाहर.
जब चुभते हैं हमें अपनी गुलाब बाड़ी के काँटे
तब हमें दूर छूट गया कोई पुराना
कनेर का पेड़ याद आता है.
देह और आत्मा में जब लगने लगती है दीमक
तो एक दिन दूर छूट गया पुराना खुला आंगन याद आता है
मीठे पानी वाला पुराना कुआँ याद आता है
बचपन के नीम के पेड़ की छाँव याद आती है.
हम उनके पास जाते हैं, वे हमें गले से लगा लेते हैं
हम उनके कन्धे पर सिर रखकर रोना चाहते हैं
वे हमें रोने नहीं देते.
और जो रुलाई उन्हें छूट रही होती है
उसे हम कभी देख नहीं पाते.
6 comments:
भगवत रावत जी को विनम्र श्रद्धांजलि!
दुनिया का सबसे कठिन काम है जीना
और उससे भी कठिन उसे, शब्द के अर्थ की तरह
रच कर दिखा पाना। ऐसी बेमिसाल पंक्तियां न सिर्फ लिखने वाले बल्कि जीवन को शब्द के अर्थ की तरह रच कर दिखाने वाले, हम सब के प्यारे कवि भगवत रावत को हार्दिक श्रद्धांजलि।
यह सदमा है मेरे लिए.
are dadda,mere pyare,are hiraman!
और जो रुलाई छूट रही....
श्रद्धांजलि।
देह और आत्मा में जब लगने लगती है दीमक
तो एक दिन दूर छूट गया पुराना खुला आंगन याद आता है
मीठे पानी वाला पुराना कुआँ याद आता है
बचपन के नीम के पेड़ की छाँव याद आती है.
हम उनके पास जाते हैं, वे हमें गले से लगा लेते हैं
हम उनके कन्धे पर सिर रखकर रोना चाहते हैं
वे हमें रोने नहीं देते.
!!!!!!!!!
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