तकरीबन डेढ़ दशक तक आलोक धन्वा ने कविता नहीं लिखी. पिछले साल उनकी कुछ नई कवितायेँ पत्रिकाओं और ब्लॉग्स के ज़रिये लोगों तक पहुँची थीं. उन्हीं को यहाँ लगाने का मोह-संवरण नहीं कर पा रहा हूँ.
चेन्नई में कोयल
चेन्नई में कोयल बोल रही है
जबकि
मई का महीना आया हुआ है
समुद्र के किनारे बसे इस शहर में
कोयल बोल रही है अपनी बोली
क्या हिंदी
और क्या तमिल
उतने ही मीठे बोल
जैसे अवध की अमराई में!
कोयल उस ऋतु को बचा
रही है
जिसे हम कम जानते हैं उससे!
ओस
शहर के बाहर का
यह इलाक़ा
ज़्यादा जुती हुई ज़मीन
खेती की
मिट्टी की क्यारियाँ हैं
दूर तक
इन क्यारियों में बीज
हाथ से बोये गए हैं
कुछ देर पहले ज़रा-ज़रा
पानी का छिड़काव किया गया है!
इन क्यारियों की मिट्टी नम है
खुले में दूर से ही दिखाई
दे रही शाम आ रही है
कई रातों की ओस मदद करेगी
बीज से अंकुर फूटने में!
फूलों से भरी डाल
यह इलाक़ा
ज़्यादा जुती हुई ज़मीन
खेती की
मिट्टी की क्यारियाँ हैं
दूर तक
इन क्यारियों में बीज
हाथ से बोये गए हैं
कुछ देर पहले ज़रा-ज़रा
पानी का छिड़काव किया गया है!
इन क्यारियों की मिट्टी नम है
खुले में दूर से ही दिखाई
दे रही शाम आ रही है
कई रातों की ओस मदद करेगी
बीज से अंकुर फूटने में!
फूलों से भरी डाल
दुनिया से मेरे जाने की बात
सामने आ रही है
ठंडी सादगी से
यह सब इसलिए
कि शरीर मेरा थोड़ा हिल गया है
मैं तैयार तो कतई नहीं हूँ
अभी मेरी उम्र ही क्या है!
इस उम्र में तो लोग
घोड़ों की सवारी सीखते हैं
तैर कर नदी पार करते हैं
पानी से भरा मशक
खींच लेते हैं कुएँ से बाहर!
इस उम्र में तो लोग
किसी नेक और कोमल स्त्री
के पीछे-पीछे रुसवाई उठाते हैं
फूलों से भरी डाल
झकझोर डालते हैं
उसके ऊपर!
बारिश
सामने आ रही है
ठंडी सादगी से
यह सब इसलिए
कि शरीर मेरा थोड़ा हिल गया है
मैं तैयार तो कतई नहीं हूँ
अभी मेरी उम्र ही क्या है!
इस उम्र में तो लोग
घोड़ों की सवारी सीखते हैं
तैर कर नदी पार करते हैं
पानी से भरा मशक
खींच लेते हैं कुएँ से बाहर!
इस उम्र में तो लोग
किसी नेक और कोमल स्त्री
के पीछे-पीछे रुसवाई उठाते हैं
फूलों से भरी डाल
झकझोर डालते हैं
उसके ऊपर!
बारिश
बारिश एक राह है
स्त्री तक जाने की
बरसता हुआ पानी
बहता है
जीवित और मृत मनृष्यों के बीच
बारिश
एक तरह की रात है
एक सुदूर और बाहरी चीज़
इतने लंबे समय के बाद
भी
शरीर से ज़्यादा
दिमाग़ भीगता है
कई बार
घर-बाहर एक होने लगता है!
बड़े जानवर
खड़े-खड़े भींगते हैं देर तक
आषाढ़ में
आसमान के नीचे
आदिम दिनों का कंपन
जगाते हैं
बारिश की आवाज़ में
शामिल है मेरी भी आवाज़!
स्त्री तक जाने की
बरसता हुआ पानी
बहता है
जीवित और मृत मनृष्यों के बीच
बारिश
एक तरह की रात है
एक सुदूर और बाहरी चीज़
इतने लंबे समय के बाद
भी
शरीर से ज़्यादा
दिमाग़ भीगता है
कई बार
घर-बाहर एक होने लगता है!
बड़े जानवर
खड़े-खड़े भींगते हैं देर तक
आषाढ़ में
आसमान के नीचे
आदिम दिनों का कंपन
जगाते हैं
बारिश की आवाज़ में
शामिल है मेरी भी आवाज़!
2 comments:
कोयल तो बस ऋतु को बचाने में लगी है, हमारी उपाधियों से परे।
कोयल उस ऋतु को बचा
रही है
जिसे हम कम जानते हैं उससे!
बेहतरीन भाव ... अभिव्यक्ति के
सादर
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