Monday, July 9, 2012
तुम अब भी
अब भी
-निज़ार क़ब्बानी
तुम अब भी, यात्रारत मेरी प्यारी
अब भी वही इन दस सालों बाद
धंसी हुई हो मेरी बग़ल में, किसी भाले की तरह.
1 comment:
ANULATA RAJ NAIR
said...
वाह!!!!!!!!!!!!!!!
बेहतरीन....
अनु
July 9, 2012 at 2:00 PM
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वाह!!!!!!!!!!!!!!!
बेहतरीन....
अनु
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