पुराने ढब की उर्दू लिखने वाले उस्तादों मीर सोज़, सौदा और ख़ुद बाबा मीर तकी मीर के बाद मुसहफ़ी आख़िरी उस्ताद माने जाते हैं. मुसहफ़ी साहब के बारे में विस्तार से फिर कभी. आज उनकी एक रचना का लुत्फ़ उठाइए ताहिरा सैयद की आवाज़ में –
आता है किस अंदाज़ से टुक नाज़ तो देखो
किस धज से क़दम पड़ता है अंदाज़ तो देखो
करता हूँ मैं दुज़्दीदा नज़र गर कभी उस पर
नज़रों में परख ले है नज़रबाज़ तो देखो
मैं कंगूरा-ए-अर्श से पर मार के गुजरा
अल्लाह रे रसाई मेरी परवाज़ तो देखो
अबतर है ये दीवान तो मियाँ ‘मुसहफ़ी’ सारा
अंजाम की क्या कहते हो आग़ाज़ तो देखो
1 comment:
pata nahi kyo...andaze bayaan,aisa hai ki...nazir akbarabadi ki yaad aa gayi !!
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