कवि-आलोचक पंकज चतुर्वेदी द्वारा
किए गए ये अनुवाद वी. के. सोनकिया के सम्पादन में निकलने वाली अनियतकालीन पत्रिका
आशय के सातवें अंक में छपी थीं. इन अनुवादों को वहीं से साभार लिया गया है –
वलिभिर्मुखमाक्रान्तं पलितेनाङ्कितं शिरः ।
गात्राणि शिथिलायन्ते तृष्णैका तरुणायते ।।
-
(वैराग्यशतक ८)
***
चेहरे पर
झुर्रियां छा गईं
सर पर
सफ़ेद बालों के
निशान
पड़ गए
शिथिल अंग
एक तृष्णा ही
युवा होती
जा रही.
(जारी. चित्र – अल्बेरतो अलफोंसो की कृति “मैन
एजिंग, मैन हैंडलिंग”)
2 comments:
गुलजा़र ने भी यूं ही नहीं कहा...उम्र कब की बरस कर सुफेद हो गई, काली बदरी जवानी की छटती नहीं।
बहुत खूब....
अद्भुत श्रुंखला...
अनु
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