Monday, January 7, 2013

हर भले आदमी की एक रेल होती है



रेल

हर भले आदमी की एक रेल होती है
जो माँ के घर की ओर जाती है

सीटी बजाती हुई
धुआँ उड़ाती हुई. 

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अब यही कविता आलोक जी के स्वर में, जनाब अनूप शुक्ल के सौजन्य से. 


4 comments:

naveen kumar naithani said...

शनैःशनैः होती जाती है
जीवन से अब दूर
आशिक जैसी विकट उसांसें
वह सीटी भरपूर
(वीरेन डंगवाल)

मुनीश ( munish ) said...

अच्छी फोटू , बढ़िया बोल ।

अनूप शुक्ल said...

बहुत खूब!

आलोक धन्वाजी की आवाज में यह कविता वीडियो मेरे ब्लॉग पर है। चाहें तो इसे अपने यहां लगा सकते हैं- लिंक ये रहा -http://hindini.com/fursatiya/archives/1745

मुनीश ( munish ) said...

धन्वा जी का विडियो लगाने से कविता का ये पेज समृद्ध हुआ है । शुक्ल जी को धन्यवाद , आपको भी धन्यवाद ।