Sunday, January 6, 2013

ऐश्वर्य की निर्जनता में नहीं हमारी गलियों में पैदा हुआ एक लड़का है


१९८९ में लिखी गयी यह कविता आज भी कितनी प्रासंगिक है -


ज़िलाधीश

- आलोक धन्वा

तुम एक पिछड़े हुए वक्ता हो।
 
तुम एक ऐसे विरोध की भाषा में बोलते हो
जैसे राजाओं का विरोध कर रहे हो !
एक ऐसे समय की भाषा
जब संसद का जन्म नहीं हुआ था !
 
तुम क्या सोचते हो
संसद ने विरोध की भाषा और सामग्री को
वैसा ही रहने दिया
जैसी वह राजाओं के ज़माने में थी ?
 
यह जो आदमी
मेज़ की दूसरी ओर सुन रहा है तुम्हें
कितने क़रीब से और ध्यान से
यह राजा नहीं है ज़िलाधीश है !
 
यह ज़िलाधीश है
जो राजाओं से आम तौर पर
बहुत ज्यादा शिक्षित है
राजाओं से ज्यादा तत्पर और संलग्न !


यह दूर किसी किले में - ऐश्वर्य की निर्जनता में नहीं
हमारी गलियों में पैदा हुआ एक लड़का है.
यह हमारी असफलताओं और ग़लतियों के
बीच पला है
यह जानता है हमारे साहस और लालच को
राजाओं से बहुत ज्यादा धैर्य और चिंता है इसके पास !
यह ज्यादा भ्रम पैदा कर सकता है
यह ज्यादा अच्छी तरह हमें आज़ादी से
दूर रख सकता है.
कड़ी
कड़ी निगरानी चाहिए
सरकार के इस बेहतरीन दिमाग़ पर !
कभी-कभी तो इसे सीखना भी पड़ सकता है !

2 comments:

अजेय said...

बहुत स्पष्ट , बेहद सम्प्रेषणीय. हमारी गलियों में पला बढ़ा आदमी हमारे लालच और साहस को ज़्यादा अच्छे से जानता है. ज़्यादा खतरनाक है यह आदमी . बेहतरीन पोलिटिकल विचार !

मुनीश ( munish ) said...

अंग्रेज़ ज़िलाधीशों की सदाशयता के क़िस्से आज भी ज़िंदा है । अपने इलाक़े की चिड़ियों, वनस्पतियों और इतिहास पर किताबें लिख गए वे विदेशी ज़िलाधीश लेकिन ये हमारे होते हुए भी हमारे हो नहीं पाते क्योंकि इन्हें होने दिया नहीं जाता ये यक़ीन मानिए । गन्दे गलीज़ वो ही हैं जिन्हें लोग चुन कर लाते हैं । ये लोग अपेक्षाकृत कम गन्दे हैं ।