Tuesday, January 8, 2013

एक किशोरी के प्रेम में डूबे थे हम एकसाथ पाँच जने


सुनील गांगुली की कविता
(बांग्ला से अनुवाद - लाल्टू


चाय की दूकान पर


लंदन में है लास्ट बेंच पर होता जो डरपोक परिमल,
रथीन अब है साहित्य का मठाधीश
सुना है दीपू ने चलाई है बड़ी कागज़ की मिल
और पाँच चायबागानों में है हिस्सा प्रतिशत चालीस
फिर भी मौका मिले तो हो जाता है देशसेवक;

ढाई दर्जन तिलचट्टे छोड़ क्लास रुकवाई जिसने वह पागल अमल
वह आज बना है नामी अध्यापक!
अद्भुत उज्ज्वल था जो सत्यशरण
उसने क्यों खुद का गला काटा चला तेज खुर-
अब भी दिखता वह दृश्य तो होती सिहरन
पता था कि दूर जा रहा था, पर इतनी दूर?

नुक्कड़ की चाय की दूकान पर अब है कोई नहीं
कभी यहाँ हम सब सपनों में थे जागते
एक किशोरी के प्रेम में डूबे थे हम एकसाथ पाँच जने
आज यह कि याद न उस लड़की का नाम कर पाते.

2 comments:

अनूप शुक्ल said...

क्या बात है!

अनूप शुक्ल said...

"फिर भी मौका मिले तो हो जाता है देशसेवक;"

क्या बात है! वाह!