Saturday, April 6, 2013

उत्तर पूर्व की कविताएँ – २



एक सपने की कहानी

-युमलेंबम इबोमचा
(अनुवाद – गोपाल प्रधान)

और कौन देख सकता है
ऐसा सपना?
मैंने एक सपना देखा, सुन्दर सपना
इसकी शुरुआत तकरीबन दुस्वप्न की तरह हुई.
हमारा घर था, घनघोर अँधेरा;
फर्श पर गाड़ी के कुचले गए चूहों की
मानिंद बच्चों की लाशें, अंतडियां बाहर निकलीं;
लम्बे लम्बे डग भरता मैं बाहर आया.
काफी कोशिश कर दरवाजा खोल मैं  
बाहर निकला
सामने भी कोलतार की लंबी सड़क
दूर सड़क पर धुंधले धुंधले
कई लोग नज़र आए.
दाएँ बाएँ दोनों तरफ़ सड़क के
कंधे से ऊपर निकली बंदूक की नली
पंक्तिबद्ध लम्बी कतार
बंदूक की नालें कोने अंतरे
खेतों और चरागाहों में भी बंदूकें
एक नाल मेरे गाल के पास
एक होंठों के कोर पर
“फायर” – कोई चीखा
तो शुरू हो गयी गोलीबारी
मैं मरा
एक गोली गालों पर लगी
हे भगवान!
गोली लगना भी युवती के
नरम हाथों की छुअन सरीखी
चीज़ हो गयी?
गोली मेरे मुंह में लगी
और बुलेट अंगूर सरीखी
गोली लगने का अहसास
इतना सुखद कभी नहीं था.
मैं बोला – अगर गोलियाँ अंगूर सी मीठी
मुझको मारो – बार बार
“फायर”
जून की बारिश की तरह
गोलियों की बाढ़ आ गयी
मेरे आगे ढेर के ढेर अंगूर, अखरोट किसमिस.
आनंददायक शीतल ध्वनि है बन्दूक की
शांतिप्रदायक बांसुरी सितार वायलिन
सब हेच
मेरे कहने के परे है यह सुख –
बंदूकों की नाल से रंगबिरंगे
फूल बरस रहे थे.
शीतल पवन मंद मंद बह उठा
पहाड़ियों पर और घाटियों में सोने सी धूप
चमक उठी
युवतियां ही युवतियां
केशराशि अगरु की सुगंध से सुवासित
मुख खुशी से खिले हुए
नौजवानों के सामने से मटक मटक कर चलीं.
बूढ़े भी सज संवर कर चले
मानो शादी में आए हों.
औरतें बाज़ार जा रही थीं लौटती हुई
औरतों का हंसकर स्वागत करती हुईं
सब साथ साथ खिलखिला रहे
सब सपना था
नींद में भी मैं जानता था सपना देख रहा हूँ
पर जानते हुए भी जागना नहीं चाहता था
और कौन देख सकता है ऐसा सपना?

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(मणिपुरी कवि युमलेंबम इबोमचा का जन्म १९४९ में कैशमपट इम्फाल में हुआ था. अब तक उनके दो काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं. कहानियों के संग्रह के लिए उन्हें १९९६ में साहित्य अकादमी पुरूस्कार प्राप्त हुआ. फिलहाल वे मणिपुर के शिक्षा विभाग में साइंस सुपरवाईज़र हैं.)   

1 comment:

Sunitamohan said...

heart breaking creation!!gr8 writing!!