गुलाम
अली और आशा भोंसले के अल्बम ‘मेराज़-ए-ग़ज़ल’ से एक उम्दा ग़ज़ल –
दयार-ए-दिल की रात में चराग़ सा जला गया
मिला नहीं तो क्या हुआ वो शक्ल तो दिखा गया
जुदाइयों के ज़ख्म दर्द-ए-ज़िन्दगी ने भर दिए
तुझे भी नींद आ गयी मुझे भी सब्र आ गया
ये सुबह की सफ़ेदियाँ ये दोपहर की ज़र्दियाँ
अब आईने में देखता हूँ मैं कहाँ चला गया
वो दोस्ती तो खैर अब नसीब-ए-दुश्मनां हुई
वो छोटी छोटी रंजिशों का लुत्फ़ भी चला गया
ये किस खुशी की रेत पर ग़मों को नींद आ गई
वो लहर किस तरफ गई ये मैं कहाँ समा गया
1 comment:
आपकी इस प्रस्तुति की चर्चा सोमवार [01-07-2013] को
चर्चामंच 1293 पर
कृपया पधार कर अनुग्रहित करें
सादर
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