बरेली के मठ लक्ष्मीपुर में इरफ़ान
अली पिछले १५ सालों से अपने दो भाइयों नाज़िम और नौशाद के साथ मुक़द्दस माह-ए-रमज़ान
और सावन में रोजादारों और भक्तों के लिए सेवइयां बना रहे हैं. वह मैदे से इन
सेवियों को तैयार करते हैं. मैदे और पानी को मिक्सर में गूंदा जाता है और उसको
पीतल की सौ नम्बर की जाली से छान लिया जाता है. बाहर निकाल कर सूत की तरह लम्बी
सेवइयों को बांस के किसी लम्बे डंडे में दोनों ओर लटका कर दो लोगों द्वारा सुखाने
के लिए लकड़ी के बने अड्डों में फैला दिया जाता है. थोड़ा सूखने के बाद उन्हें
हिलाकर अलग अलग कर लिया जाता है. इसके बाद इन्हें हल्की आंच में सुखाकर गठरी जैसे
बंडल बना कर रखा जाता है. धीमी आंच में इन्हें पकने में करीब १८ घंटे लगते हैं. जब
इनका रंग गुलाबी हो जाता है तो मान लिया जाता है कि अब यह खाने योग्य तैयार हो गयी
है ...
अब और टाइप नहीं किया जा रह. आप तस्वीरें
देखिये और मुदित होइए -
(फोटो के अलावा टैक्स्ट भी रोहित का ही है. पूरा टैक्स्ट टाइप न कर पाने की कोताही मेरी)
2 comments:
first time jana ki kaise banti hain swayyan..
वाह ...
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
साझा करने के लिए आभार।
सप्ताह मंगलमय हो।
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