विनोद मेहता की किताब ‘मीना कुमारी –
अ क्लासिक बायोग्राफ़ी’ एक बार फिर से चाट डाली. १९७२ में छपी यह किताब आज के फिल्मप्रेमी
युवाओं ने ज़रूर पढनी चाहिए. विनोद मेहता की मीनाकुमारी से एक भी मुलाक़ात नहीं हुई थी.
किताब में उनके जीवन से जुड़े रहे लोगों के तमाम दिलचस्प इंटरव्यू हैं – और आपको हिन्दी
सिनेमा की सबसे बड़ी ‘ट्रेजेडी क्वीन’ को खासे करीब से देखने का मौका मिलता है.
हाल के सालों में इस किताब का
रीप्रिंट आया है. विनोद मेहता की नई भूमिका के साथ.
एक अंश – “मीना कुमारी में मेरी
दिलचस्पी का स्रोत सीधे मीनाकुमारी नहीं थीं. उसे एक और स्त्री ने पाला-पोसा था (ज़ाहिर
है, वह एक गोरी स्त्री थी) जिसने मेरे लडकपन के दिनों पर ऐसा इरोटिक और
संवेदनात्मक प्रभाव डाला था जिस बारे में मुझे अभी सोचना बाकी है. वह स्त्री मर्लिन
मुनरो थी. और अलबत्ता मेरी नायिका (मीना कुमारी) और मर्लिन के दरम्यान हज़ारों मील
का फ़ासला था, उनके बीच कुछ दिलचस्प समानताएं भी हैं. सार्वजनिक रूप से उनमें कुछ
भी समान नहीं था; मगर स्क्रीन से परे वे सगी बहनें थीं. वही शारीरिक शक्तियां
जिन्होंने दोनों को गाथाओं में तब्दीलकर दिया था, वही आधे-अधूरे अतृप्त सम्बन्ध,
वही अदम्य हसरतें, वही आत्मघाती हठ.”
किताब हार्पर कॉलिन्स ने छपी है. खोजिये,
मंगाइए, पढ़िए - अच्छी किताब है.
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